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औरत

Great India
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आज हमारे समाज में एक बीमारी आ चुकी है जिस से हम आने वाले नस्ल को कैसे बचाएं ये चिंता सताती रहती है एक समय आता है के पूरा देश तड़प उठता है हर तरफ से चीख पुकार की आवाज़ आती है उन आवाज़ों में उनकी भी आवाजें होती हैं जिनके लिए देश खाब से बेदार नज़र आता है हर गली मोहल्ले सड़क यहाँ तक के स्कूल से भी बचाओ, मदद करो, इज्ज़त दो , सुरक्छा दो की आवाजें आसमान को जाती हैं मगर बेहद अफ़सोस के साथ फिर वही आवाज़ आती है के आज फिर एक मासूम की इज्ज़त तार तार हो गयी एक भारत की बेटी ने फिर अपनी इज्ज़त को खो दी आज एक ग़रीब का घर इज्ज़त से खाली हो गया आखिर वजह क्या है कमी किस चीज़ की है कौन है ज़िम्मेदार ? क्यूँ नहीं रुकता ये ज़ुल्म ?

क्या तालीम नहीं है ?
क्या पैसा नहीं है ?
क्या कानून नहीं है ?

तालीम है मगर हमारे घर का माहौल अजीब है हम मॉडर्न फॅमिली कहलाना चाहते हैं वो इस तरह के शर्म करना पर्दे में रहना सबका आदर सम्मान करना शाएद जो कल के पूर्वजों में था आज हमारे घर नहीं जो हमारे बाप दादा छुपा कर रखते थे आज हम दिखाते हैं !

पैसा भी है मगर उसका सही इस्तेमाल नहीं
कानून है मगर परवाह नहीं कानून के रखवाले शपथ तो लेते हैं मगर भूल जाते हैं इस लिए के उन्हें उस तरह शपथ नहीं दिलाया जाता जिस तरह उनके दिल और देमाग में रहना चाहिए .
जिस औरत की हिफाज़त के लिए पूरी दुनिया में चर्चा हो रहा है जिसे हम इज्ज़त दिलाना चाहते हैं जिनकी आदर सम्मान करना चाहिए क्या कभी सोचा गया है के आखिर औरत कहते किसे हैं औरत का मानी क्या है औरत का मतलब है छुपाना हिफाज़त करना परदे में रखना नुमाईश से बचाना ठीक उसी तरह जिस तरह के हम दौलत को बैंक में रखते हैं पैसा तो है मगर उसे छुपा दिया जाता है उसके ऊपर सुरक्छा का कवच चढ़ा दिया जाता है अगर उसे बैंक या लाकर में नहीं रखा जाए तो कभी भी चोरी हो सकता है जब उसी दौलत को एक जायेदाद का रूप दे दिया जाता है तो अब वो चोरी से बच गया पैसा तो है मगर कार के शकल में दौलत तो है मगर घर या ज़मीं के शकल में मतलब ये हुआ के पैसे को ऐसा रूप दे दिया गया के छुप भी गया और बच भी गया ठीक उसी तरह अगर हम अपने घर की बेटियों को एक पर्दा दे दें उनको हर जगह जाने की इजाज़त दें मगर औरत की तरह जो एक हया की मूरत है वफ़ा की देवी है उसे हया व वफ़ा और शर्म को पामाल कर के घर से बहार निकलना शोभा नहीं देता उसका एक एक अंग छुपाने वाला है जहाँ भी जाए जो चाहे करे मगर इस तरह नहीं के जैसा एक मर्द रहता है मर्द को परदे की ज़रुरत नहीं औरत खुद एक परदे का नाम है आज अक्सर ये देखा जाता है के एक मर्द पुरे जिस्म को ढँक कर निकलता है उसके जिस्म पर फुल कवर है मगर हमारी बेटियां अधनंगी निकलती हैं जिन्हें परदे की ज़रुरत है वो बे पर्दा चल रही हैं क्युनके औरत को मालिक ने बनाया ही है परदे के लिए हाँ वो सिपाही भी हैं झाँसी की रानी भी है सब कुछ हैं मगर उनके पास अब हुनर ताक़त का कवच साथ में है दुनिया के कानून ने भी सबके लिए एक युनिफोर्म तैयार किया है जो युनिफोर्म जिसके लिए है उसी को दिया जाता है अगर पुलिस की वर्दी देश का सैनिक पहने तो ग़लत अगर वकील का कोट दूसरा पहने तो ग़लत हर का युनिफोर्म अलग अलग है उसी तरह औरत का युनिफोर्म मर्द से अलग है और होना भी चाहिए जिस से आसानी से समझा जा सके कुछ ऐसी बातें हैं जो महसूस की जा सकती हैं हर माँ बाप समझ सकता है हम भारतीय समाज में रहने वाले हैं हमारी सभ्यता क्या है हम कौन हैं कैसे रहना चाहिए हमें पहचाना भी जाता है तो किस नाम से दुनिया में हमारी सभ्यता की क्या इज्ज़त है जब हम खुद अपनी मान मर्यादा सभ्यता भूल जायेंगे तो यकीनी है के मुसीबत आफत सब कुछ हम पर ही आएगा .
इस लिए आज हमें तबाह होने से पहले खुद को संभलना होगा खुद को सोचना होगा के हम खुद अपनी हिफाज़त कैसे करें .

खुदा ने आज तक उस कौम की हालत नहीं बदली : न खुद ही खेयाल हो जिसको अपने ही हालत के बदलने का

गुलशने आलम में पाकीज़ा हवा परदे में है : फूल में बू खाई छुपी फल का मज़ा परदे में है :
खानदानी औरतें फिरती हैं जिनकी बे हेजाब : शर्म से कहती नहीं शर्म व हया परदे में है :
फखर नाजी क्यूँ न हो पर्दा नशीनो के लिए : पर्दागिये गैब यानि खुद खुदा परदे में है

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