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हम क्यूँ होश में नहीं आते ?

Great India
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ये बात शाएद किसी को बुरी लगे के हम होश में क्यूँ नहीं आते मगर सुन लिया जाए के क्यूँ हम ऐसे हैं क्या करते हैं . वजह ये है के हम कब तक खुदगर्ज़ बने रहेंगे कब तक सिर्फ खुद के लिए जिंदा रहना चाहेंगे कब तक किसी दुसरे की ऊँगली के सहारे चलते रहेंगे अंध बिश्वाश और अँधा सपोटर कब तक रहेंगे हम क्यूँ नहीं सोचते अपने देमाग से क्यूँ नहीं करते फैसला खुद आखिर कब तब तक दूसरों की मर्ज़ी से चलेंगे .

जैसे :
* एक आरोपी जिस पर आरोप साबित हो जाता है उसके साथ हमारे देश की कुछ जनता कहती है के वो बेक़सूर है उसके लिए रैली धरना जलूस सब कुछ निकाल लेते हैं इस हंगामे से कितनो को परिशानिया होती हैं जबके उस आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए भी काफी तादाद में देश की जनता रैली धरना जलूस निकालती है अब ये बात पहले वाले ग्रुप को बात क्यूँ नहीं समझ में आती के एक १०० लोगों का ग्रुप सबूत के साथ गिरफ्तार के लिए धरना देता है दूसरा १०० का ग्रुप बिना सबूत के चिल्लाता है के उसे गिरफ्तार मत करो दोनों आम जनता ही है आखिर ये समझ क्यूँ नहीं के जिसके सर पर मुसीबत पड़ा है जिसकी इज्ज़त लुटी है जिसका घर बर्बाद हो गया है जिसके पास सब सबूत है उसके दिल पर क्या गुज़र रही है उसके साथ वही जनता है और वो जनता भी है के सब कुछ देखते हुए भी अँधा सपोटर बन कर उसकी रिहाई के लिए शोर मच रहा है दोनों तो आम जनता ही है गरीब ही है इज्ज़त वाले हैं बेटी बेटा वाले हैं बहु दामाद वाले हैं सब से पहले फर्यादी की फरयाद और ज़ख़्म को हम देखे बिना ही उसकी तरफदारी करते हैं आखिर क्यूँ नहीं आता हमें होश के एक दौलत वाले को बचाने के लिए गरीब की गरीबी का मजाक उड़ाते हुए उसकी पीड़ा को समझे बिना उसके ज़ख्म को और हरा कर देते हैं .
* वो आरोपी नेता हो या धर्म का रखवाला हो या जो भी हो हम उसकी दौलत और शोहरत के चमक से इतने अंधे हो जाते हैं के उसकी तरफ से हम खुद ही आपस में लड़ जाते हैं और अपना अमन चैन ख़राब कर लेते हैं जो नेता संसद में एक दुसरे पर चिल्लाते हैं वो हकीक़त में जनता के साथ हैं या नहीं ये भी हमें पता होता है फिर भी उनके बारे में हम फैसला नहीं कर पाते हैं , हमारी आँखे देखती हैं के एक नेता किसी भी भी सरकारी सिट पर बैठने से पहले आम जनता और मामूली पूंजी का था मगर चुनाव जितने के कुछ माह या साल के बाद उसका सब कुछ बदल गया हमने खुद को बदलने के लिए भेज था वो खुद को ही बदल कर हमसे दूर हो गया अब भी हम उसी के साथ हैं और उसी की हेमायेत करते हैं आखिर क्यूँ नहीं बदल देते एक साथ एक राय होकर क्यूँ कर पाते हैं सही फैसला क्यूँ नहीं फेंक देते उस कुर्सी से काफी दूर फिर दोबारा क्यूँ देते हैं उसका साथ सिर्फ इस लिए के उसने कुछ को अपना मोहरा बना लिया कुछ नामी दामी लोगों को अपनी दौलत से खरीद लिया और उनको हमें डराने और समझाने के लिए अपने साथ कर लिया.
* एक मामूली आम जनता के दर्द को हम खुद मामूली जनता होकर समझ नहीं पाते आपस में ही एक दुसरे के साथ उलझ जाते हैं सिर्फ इस लिए एक ने चोर को चोर कह दिया दुसरे को बुरा लग गया अच्छा तो जब होता के जिसे चोर कहा गया हमने सुना हम उसकी हकीक़त का पता लगाते मामले को समझते सच्चाई क्या है जान्ने की कोशिश करते फिर आपस की मोहब्बत को टूटने नहीं देते एक दुसरे को समझते समझाते किसी नतीजे पर पहुँच कर हल निकालते मगर हरगिज़ अपनी मोहब्बत और ताक़त को ख़तम नहीं करते .
* हर किसी की ताक़त समाज से बनती है एक गावं में २०० लोग रहते हैं तो जब तक एक हैं तब तक एक ताक़त होती है जब एक दुसरे के खेलाफ हो गए तो ताक़त ख़तम हो गयी जो जब चाहेगा एक एक कर के पुरे २०० को ख़तम कर सकता है एक गलत राय से पूरा गांव बिखर जाता है मोहब्बत और एकता ही थी जब के राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने सबको एक किया था और भारत वर्ष को दुसरे दुश्मनों से आज़ाद कराया था अगर एक दर्द को एक ज़ुल्म को सब महसूस नहीं करते एक नहीं होते तो आज भी हम गुलाम होते .

इस लिए मैं कहना चाहूँगा उन तमाम देशवासियों से खास कर जो गरीब और गांव में बसते हैं ज़यादह टार लोगों तक टेलिविज़न और रेडिओ पहुँच ही चूका है अगर हम अपनी ताक़त को जान जाएँ और उनका मुकाबला करें जो हमारी भलाई नहीं चाहते हमें एक रहने देना नहीं चाहते सिफर हमें एक दुसरे से लड़ा कर अपना फायेदा हासिल करना चाहते हैं हम गरीब और बेवकूफ जब तक रहेंगे उनका भला होगा उनके जाल में फंसे रहेंगे क्युनके वो कभी नहीं चाहेंगे के हमारी ताक़त एक हो हम होशियार हों इस से उनकी ताक़त कमज़ोर होगी हम में समझ पैदा होगा हम सोचना समझना सिख जायेंगे तो उनकी रंगदारी हम पर नहीं चलेगी उनकी हर चाल को हम समझने के काबिल हो जायेंगे . आज ज़रुरत इसी की है हम ज़ात पात हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई को शोभा ये देता है के हम सबकी इज्ज़त और अदब करें एक दुसरे के धर्म से मोहब्बत करें अपनी ताक़त को बचा कर रखें.

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