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महत्व जान का या माल का ?

Great India
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मैं पहले ये महसूस करता हूँ के शायेद मेरी बातें सबको पसंद नहीं आती हैं इस लिए के मैं किसी एक के तरफ से नहीं लिखता हूँ और हमेशा आप सबकी राय जानना भी चाहता हूँ मगर आप लोग मुझे ये एहसास नहीं कराते की मेरा सोच कैसा है मेरी बातें कहाँ तक गलत या सही हैं फिर भी मैं अपनी बातें और अपने दिल की खाहिश आप तक पहुंचाता रहूँगा .

आज तक यही देखा गया है के कोई ऐसा मनुष्य , महापुरुष , देवी , देवता , प्रधान मंत्री , मुख्यमंत्री , मंत्री , या कोई भी जिसका हमजात हो वो कहीं न कही मतभेद या इलज़ाम का योग्य ठहर ही जाता है कोई भी आज इस धरती पर बे दाग नहीं आम बात है के हम जिसे राष्ट्रपिता कहते हैं जिन्होंने हमें एक मार्ग दर्शन दिया हमें आजाद करने के लिए वो सब कुछ किया जो उन से बन पड़ा आखिर में उन्हें भी दुष्टों ने नहीं छोड़ा उन्हें भी इस धरती पर आज़ादी के बाद रहने नहीं दिया.

पता ये चलता है के जो भी बिपक्छ में होता है उसका यही काम है के उसके पीछे रहे और कैसे भी उसकी टांग खिचता रहे अगर अच्छा करता है तो ये इलज़ाम के अपने नाम के लिए करता है अगर नहीं कर सका तो बुरा है ही यानी के निकम्मा बे इमां काहिल न जाने क्या क्या है ये हमारे भारत ही नहीं बलके पुरे देश का यही हाल है .
अब ये बात हमारे देश में भी है के कोई भी किसी को माफ़ नहीं करता खास कर जब अपने स्वार्थ या अपने हक में फायेदा का सवाल हो तो , आज जितने भी घोटाले हुए हैं सबके लिए हंगामा हो रहा है सबको एक एक मुद्दा मिला हुआ है जबके ये माल का घोटाला है आज इसी घोटाले में लालू के राजनीती का भी घोटाला हो गया जो खुद लालू ने ही किया है उसी तरह और भी घोटाले के केस चल रहे हैं तो जिस तरह इन घोटालों के केस को तेज़ी से उठाया जाता है मुद्दा बनाया जाता है पूरी दुनिया को बताया जाता है ठीक उसी तरह जब जानो का घोटाला होता है या कितने घोटाले हो चुके हैं कितनी माओं के सिन्दूर का घोटाला हुआ कितने बेटों के बापों का घोटाला हुआ कितने घरों की जिंदगियों का घोटाला हुआ जिसमे सिर्फ जान ही जान गयी बेक़सूर और मासूम लोगों की जाने लूटीं उन तमाम अपराधों और हत्त्यारों को आज तक कोर्ट में घसीट कर उनको मुजरिम करार देकर उनके गुनाहों को सिद्ध कर कर उनको जेल के चाहरदीवारी में क़ैद क्यूँ नहीं किया गया एक आन्दोलन भागलपुर , गुजरात , मुंबई , मुज़फ्फरनगर ,और न जाने कितने बड़े बड़े फसाद हुए उनमे जो भी हैं वो लोग आज तक कर्युं नहीं बंद किये गए उनका फैसला क्यूँ नहीं हुआ उनपर रैली धरना आन्दोलन और तरह तरह के तरीके क्यों नहीं अपनाए जाते .

इस लिए के जहाँ माल का मामला हो कुर्सी का मामला हो लूट का मामला हो आगे आओ ये अहम् है इस लिए के ये सब खेल माल का ही है जान की कोई कीमत नहीं क्युनके मरने वाले देश के बेवकूफ गरीब लोग होते हैं जिनके जान की कोई कीमत नहीं कीड़े मकोड़े से भी कम कीमत होती है अरे ये नेता लोग तो इन गरीबों को पलते ही हैं इसी लिए बेवकूफ बना कर रखते ही हैं इसी लिए के जब ज़रुरत पड़े इनको आगे लाकर हलाल कर दो और उनके लाशों पर राजनीति करो आज तक किसी भी फसाद में कोई नेता मर नहीं कोई भी नेता का बीटा मर नहीं किसी नेता के घर पर पथराव हुआ नहीं क्यों क्या कोई नेता हिन्दू नहीं जिसके घर को कोई मुस्लिम आग लगाए कोई नेता मुस्लिम नहीं के उसके घर को हिन्दू आग लगाए हैं मगर नहीं उस वक़्त ये बहुत दूर होते हैं ये बहुत ही होशियारी से ये खेल खेलते हैं हम जैसे बेवकूफ जनता इनके बेहूदा बातों और बहकावे में आकर वो कर लेते हैं जिनका सीधा फायेदा इन्ही को होता है हम लूट जाते हैं लड़ जाते हैं बर्बाद हो जाते हैं फिर ये बड़े शान से फ़िल्मी स्टाइल में किसी बीरबार या पांच सितारा होटलों में हमारी बेवकूफी और अपनी हुशियारी पर जश्न मनाते हैं फिर बाहर आकर घडियाली आंसू बहा कर नाटक करते हैं क्यूँ के इनके पास जान का सिन्दूर धुलने का माँ के गोद उजड़ने का किसी को यतीम होने का कोई गम नहीं गम है तो सिर्फ कुर्सी जाने का पैसा जाने का मान मर्यादा लूटने का कल राज थे आज रैंक हो जाने के डर का .
आज फिर वो दिन आगया है के पहले पांच राज्यों में बनावटी चेहरा घडियाली आंसू और स्वर्ग का सपना लिए हमारे गाँव और दरवाज़े पर हाथ उठाये उसू गरीब को फिर एक बार महान बनाकर बेवकूफी का पाठ पढ़ने के लिए दोनों हाथों को गाड़ी के अन्दर से ही जोड़ कर निकालेंगे और अपना उल्लू सीधा करेंगे पुरे पांच साल तक जिस गली से गंध आती ठी आज उसी गली से ये गुजरेंगे क्यूँ के माल का मामला है कुर्सी का मामला है .
हम क्यों नहीं पहचान पाते इन ढोंगियों को क्यों फिर लाते हैं उसी ठग को क्यों नज़र नहीं आता कोई गरीब साफ़ छवि वाला क्यों नहीं खड़ा करते हम किसी मजबूर और तालीम याफ्ता गरीब को जो हमारी आवाज़ बन सके हमारी ज़बान बन सके हमारा मसीहा बन सके जो न हिन्दू की बात करे न मुस्लिम की बात करे बात करे तो इंसान की बात करे भारतीय की बात करे एकता की बात करे विकास का बात करे जो धर्म या मंदिर मस्जिद पर बात करे ज़ात पात पर बात करे किसी एक गरोह पर बात करे वो देश का हमदर्द हो ही नहीं सकता वो देश का रखवाला हो ही नहीं सकता वो लोग जो हिन्दू कार्ड या मुस्लिम कार्ड खेलते हैं उनकी नियत वही नज़र आ जाती है उन्हें हम ऐसा सबक क्यों नहीं देते के दोबारा ऐसे ये सोचने की जुर्रत ही नहीं करें क्यों के इसमें सिर्फ इनका ही भला होता है हमारा सिर्फ नुकसान ही नुक्सान .

जब नेताओं को घेरने और मुजरिम साबित होने पर संसद से बाहर जाने की बात हुयी तो सब इंकार जब अपने हक में राय तय पगाया तो बहुत अच्छा जब फिर राहुल गाँधी ने बाहर जाने का रास्ता दिखाया तो संसद का अपमान पि एम् का अपमान ये नहीं निकला ज़बान से के नहीं अच्छा हुआ सभी भ्रष्ट लोगों का सही इलाज हुआ नहीं फिर भी इलज़ाम फिर भी बहस बाज़ी फिर भी आरोप क्यों इस लिए के माल का मामला है.

जब मोदी ने शौचालय और दिवालय की बात की तो प्रवीन तोगड़िया को बुरा लगा जब बलबीर पुंज ने मदरसों को बंद करने की नसीहत की तो किसी को सुनाई नहीं दिया क्यों के इनका निशाना हमें आपस में टकराकर कुर्सी हासिल करना है हमारी जान जितनी रहेगी उतने से ही वोट लेकर ये अपने हार जित का फैसला कर लेंगे हम कम बचें या ज़यादह इनका क्या चाहे भूक से मारें या इनकी गोली से या इनके भड्कावू बोली से इनकी तो हर हाल में जय जैकार ही है.

आज जो हमें आपस में नफरत दिलाते हैं कभी हमने सोचा के एक हिन्दू और मुस्लिम की दिवार साथ में होती है पहले जिस घर में भी आग लगे बुझाने के लिए साथ वाला ही पहले आता है जब किसी की मौत होती है तो रोने के लिए पड़ोस पहले आता है चाहे वो जिस धर्म का हो बाद में उसके रिश्तेदार जब मुसीबत आती है तो दिलासा देने पहले पडोसी ही आता है चाहे वो जिस धर्म या कानून का मानने वाला हो जब एक गाँव से दुसरे गाँव का मामला हो तो सब एक साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर मुकाबला करते हुए नज़र आते हैं चाहे उस गाँव में जितने भी धर्म के लोग हों ये बातें हम समय आने पर क्यों भूल जाते हैं नहीं हम भूलते नहीं हमें भूला दिया जाता है हम एक दुसरे से नफरत नहीं करते नफरत करवा दिया जाता है हमें बहका दिया जाता है इस लिए के उनके कुर्सी और मान और माल आने का मामला है हमारी जान और प्रेम का महत्व बिलकुल नहीं इस लिए के अगर उनकी कुर्सी हमारे हाथ है तो वो हमसे ही हासिल करेंगे चाहे उन्हें जो करना पड़े .

हम क्यों नहीं सोचते इकबाल के उस शेर को जो हमारे दिलों में देश की मोहब्बत जिंदा रखता है

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसिता हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा

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