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वो मुसलमान हो नहीं सकता :

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इस्लाम धर्म एक बहुत ही साफ़ सुथरा धर्म है इस्लाम हरगिज़ उन बातो कि और उन कामो का अनुमति नहीं देता जिस से किसी भी मनुष्य को तकलीफ पहुंचे चाहे वो जिस धर्म या देश का हो इंसानो से मोहब्बत अपने मुल्क से मोहब्बत और मुल्क के लिए शहीद होने को ईमान पूरा होने का सबक देता है वो इंसान मुसलमान हो ही नहीं सकता जिसके दिल में अपने वतन से मोहब्बत और अपने वतन कि हिफाज़त का ख्याल और जज़बा ही नहीं हो सिर्फ मुस्लिम के घर जन्म ले लेने और बड़ा होकर इस्लाम के रास्ते से अलग हो और इस्लाम ने जिस चीज़ से मना किया है उस चीज़ को अगर मुस्लिम जाएज़ कहता है तो वो इस्लाम से बाहर हो जाता है इस्लाम उसे खुद ही दंड देदेता है आतंकवाद को इस्लाम कभी पसंद नहीं करता इस्लाम का मतलब ही होता है सलामती अमन चैन .
इस लिए अगर कोई भी मुस्लिम इस आतंकवाद और देश कि सलामती के लिए खतरा बन जाए और हर तरह से साबित हो जाय तो यक़ीनन उसे हमारा धर्म इस्लाम भी कहता है के उसे सजा ज़रूर दी जाय क्यूँ के जब तक उसे दुनिया में सजा नहीं दिया जाता वो मरने के बाद भी कभी भी सवर्ग में नहीं जा सकता जैसे अगर एक इंसान ( मुस्लिम ) किसी को क़त्ल कर दे और उसका जुर्म साबित हो जाय और उसे या तो क़त्ल होने वाले का सही आदमी माँ बाप बीवी बेटा पति माफ़ नहीं कर दे या उसे भी इस्लामी तरीक़े से सजा के तौर पर क़त्ल नहीं कर दिया जाय वो मरने के बाद कभी भी माफ़ नहीं किया जाएगा अगर वो दुनिया में सजा पा लिया तो उस गुनाह से पाक हो गया अब वो उस जुर्म का मुजरिम नहीं रहा लाखो का अगर मजमा है तो सिर्फ एक शब्द पर बिना किसी पुलिस और बिना किसी के कहे लाईन में लग कर एक साथ खामोश होकर रब कि इबादत करने का तरीक़ा इस्लाम सिखाता है .
अफ़सोस उन लोगों पर जो किसी का क़त्ल करते हैं देश के अमन चैन को ख़राब करते है मासूमो और बेगुनाहो का खून करते हैं वो जहाँ भी बम लगाते हैं उनको नहीं पता होता के उनके अपने भी उस धमाके में मर जाते हैं ऐसे लोगों का जिन पर जुर्म साबित हो जाए वो हरगिज़ हरगिज़ मुस्लिम नहीं उन्हें इस्लाम अपने दायरे से बाहर कर देता है अगर इस तरह के लोग अभी भी हैं और उनकी नियत ऐसी ही है तो मैं कहना चाहूंगा के वो खुद को ठगा हुआ और इस्लाम से बाहर और जहन्नुम का हिस्सा समझें .

ये शहादत ( गवाही ) गाहे उल्फत में कदम रखना है : लोग आसान समझते हैं मुसलमा होना

कुछ कानून के ऐसे रखवालों से जो इंसानियत के दुश्मन है :

आज के कानून के सिपाहियों से भी गुज़ारिश है के जो मुजरिम हैं उन्हें ज़रूर पकड़ा जाए मगर उन लोगों कि हिफाज़त भी किया जाय जो ऐसे नहीं हैं और जैसा के मैं ने कहा है के इंसान वही है जिसके हाथ से हर इंसान महफूज़ रहे अगर क़ानून के रखवाले ज़ात पात कि भावना में बह कर नाम से नफरत करते हैं जुर्म से नहीं तो उनका भी ठिकाना नरक ही होगा क्यों के उन्होंने भी इंसानियत खून किया है अगर उनके हाथ से भी किसी बेगुनाह को सजा मिलती है तो वो भी उतना ही दंड का भागी है जितना एक मुजरिम है इस लिए अपने आत्मा और दिल के खिलाफ ज़ात पात के बिना पर बेगुनाहो को फंसा कर उनका मुजरिम नहीं बनें क्यों के आप कानून के सिपाही हैं आप जब तक क़ानून का सही पालन और रखवाली करेंगे कानून ज़िंदा रहेगा और देश को ताक़त मिलती रहेगी जिस दिन आप स्वार्थी और गलत भावना में बह कर कानून का गलत प्रयोग करेंगे आपकी वर्दी ही आपके आत्मा और देश को कमज़ोर कर देगी .

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