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बच्चा जब अपने माँ के गर्भ में अपनी ज़िन्दगी का शुरुवात करता है और उस गर्भ से ही सीखना और सुनना शुरू कर देता है जो कुछ भी माँ कहती या बोलती है वो सुनता है इस बात को एक महापुरुष के बचपन के इतिहास से साबित किया गया है और विज्ञान भी कहता है के बच्चा सब कुछ सुनता है जैसे के अब्दुलक़ादिर जिलानी जिन्हे मुस्लिम बड़े पीर कहते हैं उनकी बहुत सी करामात हैं मगर सबसे पहले जब वो मस्जिद में गए उस्ताद के पास और उनको उस्ताद ने कहा के पढ़ो बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम ( शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहम करने वाला है ) आप इस शब्द से शुरू हुए और क़ुरान का १५ पारा यानि के आधा क़ुरान बिना देखे पढ़ कर रुक गए उस्ताद सुनते ही सकते में आ गए और पूछ पड़े के आज तुम्हारा पहला दिन है और ये आधा क़ुरान कैसे याद हुआ तो अब्दुलक़ादिर साहेब ने कहा के जब मैं अपने माँ के गर्भ में था तो मेरी माँ ने सिर्फ आधा क़ुरान ही पढ़ा था अगर मेरे गर्भ में रहने के अवधी में पूरा क़ुरान पढ़ी होतीं तो मैं पूरा याद करता वो जब भी पढ़ती थीं तो मैं उसे याद करता था .
हाँ ये सच है के ये सबके साथ नहीं होता इसे ईश्वर का खास देन भी कह सकते हैं मगर आज के युग में अगर वैसी माँ है जो हर पाप और झूठ और हर बुराई से पाक है और वो पुण्य ही पुण्य करती है और सदा के लिए अपने बच्चे को दुनिया कि तमाम बुराईयों से पाप से गलत बातों से गाली से उसे बचा कर उस वक़्त तक रखती है जब तक वो मासूम था तो यक़ीनन वही सीखेगा जो माँ बाप ने किया और कहा क्यूँ के ये बात साबित है बच्चा अगर भोजपुरी बोलने वाली माँ के गर्भ से जन्म लेता है और माँ भोजपुरी बोलती है तो वो भी भोजपुरी ही बोलता है अगर बच्चा किसी दूसरे भाषा के बोलने वाली माँ के गर्भ से जन्म लेता है तो वो बच्चा वही भाषा बोलता है यानि के उसका पहला चरण माँ के साथ गुज़रता है और वो वही सीखता है वही सुनता है जो माँ करती और बोलती है फिर धीरे धीरे वो सबके क़रीब होने लगता है जैसे बाप भाई बहन चाचा चची दादा दादी फिर घर के बहार पड़ोस से फिर गांव से फिर उसका दायरा बढ़ने लगता है जो कुछ भी घर से सिखा है वही उसके दिमाग़ में बैठ जाता है यानि के अभी उसका मेमोरी ताज़ा और न्यू है जो उस पर जाता है वो रिकॉर्ड हो जाता है तो अगर घर से ही माँ के गोद से ही उस मेमोरी में वो सब कुछ रिकॉर्ड कर दें जो सच ही सच है अच्छा ही अच्छा है तो यक़ीनन वो वैसा ही बनेगा जैसा हमने उसे सिखाया है .
इस लिए मेरा मानना है के बच्चे का पहला स्कूल माँ का गोद है और पहला उस्ताद माँ और बाप हैं और अब जैसा उस्ताद होगा वैसा ही शागिर्द होगा अक्सर ऐसा ही है शायद कभी कुछ अलग हो जाता है जो के वो भी सोहबत संघात पर ही निर्भर करता है .
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