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हाथी के दो दांतो के तरह है आज कि राजनीती

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आज हर तरफ पार्टी और चुनाव ही चुनाव का चर्चा है कोई भी ऐसी पार्टी या नेता ऐसा नहीं के सिर्फ ये कहे के कल क्या हुआ अब तक किसने क्या किया हमने भी खुद क्या किया ये फैसला आप पर है जो आपको अच्छा लगे ईमानदार लगे देश हित में काम करने वाला लगे गरीबों मज़दूरों मजबूरों और ज़रूरतमंदों कि मदद करने वाला लगे उसे आप अपना वोट दें अपना नेता चुने ये आपका हक़ है जो आपका नहीं वो आपके वोट का हक़दार नहीं क्यूँ के ये आपको अख्तियार है के आप उसी को ये ताक़त दें जो आपकी आवाज़ बन सके आपका खैरखाह बन सके आपको नहीं बांटे आपकी एकता को बनाये रखे आपकी सेवा करे क्यूँ के रखवाला और नेता वही होता है जो सबके दिल में रहता है ये सच है के कोई भी ऐसा नहीं के जिसका कोई दुश्मन नहीं जिसका कोई विपक्छ नहीं जिसमे कोई ऐब नहीं जिसमे कोई खराबी नहीं जिसमे एक भी कमी नहीं क्यूँ के हर इंसान अपने समझ से अच्छा भी करता है और जान कर गलत भी करता है जो बात जान कर गलत करता है उसे भी सामने वाला जानता है और जो अनजाने में गलत करता है उसे भी सामने वाला जानता है .
अब सबसे बड़ी बात ये है के डर किसे लगता है और डरता कौन है और डरता किस से है क्यूँ डरता है इस पर कुछ सोचने का दिल करता है दिल ही तो है कुछ भी सोच सकता है सो सोचा और सोचा के सभी से इस सोच को बाँट लूं देखूं कहाँ तक मेरी सोच देश हक़ और समाज हक़ में है कहाँ तक नहीं, देखिये एक इंसान कैसे इस दुनिया में सफ़र करता है इंसान अगर सोचे के :
जब तक मैं मासूम था तब तक एक राजा के तरह था सभी मेरी आव भगत करते थे प्रेम करते थे जहाँ से गुज़रता था सभी प्यार से देखते थे अपनी गोद में ले लेना चाहते थे खेलाना चाहते थे मुझे हँसाना चाहते थे दुआएं देते थे कोई डर नहीं कोई दुश्मन नहीं .
जब मैं समझने लगा और लोगों को पहचानने लगा जो कुछ भी अच्छे विचार और अच्छे निर्देश घर से मिलने लगे उस पर चलता रहा पढ़ने में दिल लगा रहा हर एक का सम्मान करता रहा सबका आशीर्वाद लेता रहा तब तक कोई डर नहीं किसी से डर नहीं कोई दुश्मन नहीं सभी का प्यार मिलता रहा .
जब मैं किसी काबिल हुआ किसी कि खिदमत करने के काबिल हुआ सबसे हमदर्दी करता रहा सबके दुखों को समझता रहा अपनी ताक़त के हिसाब से उनकी मदद करता रहा सबकी भावनाओं को समझता रहा तब तक मैं पुरे गांव का प्यारा बन चूका था सभी इज़ज़त करते थे और अपने दिल में रखते थे मेरी शोहरत बढ़ रही थी तब तक कोई दुश्मन नहीं था मुझे किसी से डर नहीं था .
जब मैं कुछ और किसी काबिल हुआ बालिग हुआ तो समय आया के लोगों ने मुझे अपना नेता चुन लिया शायद मेरी आदत और आचरण को देख कर मेरी खिदमत और देश और आम जानता से प्रेम करते देख कर लोगों ने ये फैसला लिया था जिनके दिलों में मेरे लिए विश्वास जगा था तब मुझे एक मुखिया बनाया मैं ने अपने ज़मीर को ज़िंदा रखा अपने नेक खेयालों को हमेशा याद करता रहा सबकी खिदमत और सबसे मोहब्बत करता रहा सभी खुश थे सभी खुशहाल थे कोई दुश्मन नहीं किसी से डर नहीं .
इसी तरह जब समय निकलता गया लोगों से मोहब्बत बढ़ती गयी अपना फ़र्ज़ याद रहा ईमान पर कायम रहे सबके हमदर्द और सेवक बने रहे हर तरफ से प्यार ही प्यार मिलता था तभी तो जाकर देश और दुनिया में वो नाम कमाया और इतिहास में सुनहरे हर्फों में नाम लिखा गया इज़ज़त मिली देश के लोगों के लिए अच्छे रहबर और लीडर साबित हुए महात्मा गांधी , राजेन्द्र प्रसाद सुभाषचंद्र बोस मोहम्मद अली जौहर अबुल कलाम आज़ाद और देश के अन्य शहीदों और महान परुषों के तरह बन गए आज भी इज़ज़त और सम्मान के हक़दार हैं इस लिए के उनके नियत और निति एक थी शपथ वादे और कोशिश एक थी इरादे नेक थे .

मगर जब हमने अपनी ताक़त और दौलत के नशे में लोगों पर ज़ुल्म किया लोगों कि दौलत को गलत तरीक़े से गमन किया उनके हक़ को हड़प लिया अपनी कुर्सी और फेम होने के लिए मर्यादा और दर्द कि सारी हदें तोड़ दी तो अब हमें डर लगने लगा क्यूँ के जैसा किया है वैसा ही होगा हमारे साथ , जिनका चूल्हा मेरे कारण बुझा जिसकी बरात मेरे वजह से लौटी जो मेरे वजह से यतीम बना जो मेरे वजह से बिधवा बनी और जब हम उन्ही से के बिच जायेंगे तो यक़ीनन डर तो लगेगा ही अब दुश्मनी तो हमने ही मोली है तो यक़ीनन डर हमें ही होना है ये अलग बात है लोग हमें प्रणाम भी करते हैं मगर डर से नारा तो लगाते हैं मगर डर से झंडे लगाते तो हैं मगर डर से उन्हें अभी भी मेरे ज़ुल्म से डर है मुझे उनके अंदर के दुश्मनी से डर है इस तरह से होता है डर का जन्म और हम जीते हैं डर के साये में क्यूँ के जब शपथ लिया था पुलिस अफसर का शपथ लिया था देश के इंसाफ के मंदिर ( लोक सभा ) में बैठ कर लोगों कि आवाज़ें बुलंद करने का शपथ लिया था देश कि गरीबों कि गरीबी को मिटाने का मगर नियत थी :

एक बड़ा सा फार्म हॉउस बनाने का
देहात से निकल कर खुद का एक महल दिल्ली में बनाने का
रोबदार और ताक़तवर महाबली इंसान बन्ने का
दो चार दस नौकर रखने का
दुनिया के उन अमीरों के साथ बैठ कर शान बढ़ाने का
अपने बच्चों को अमेरिका लंदन पढ़ाने का
पांच साल ही काफी था ये सब सपने सजाने का
कब फिकर थी गरीबों के एक वक़्त के खाने का
वादा आरोप हाथ जोड़ना सब तमाशा था वोट पाने का
जित कर फिर वापिस जल्दी नहीं आने का
जहाँ तक हो सके खूब कमाने का
अगली बार किसी दूसरे छेत्र से क़िस्मत आज़माने का
और अगर मुमकिन हो तो पार्टी ही बदल देने का
फिर पिछली पार्टी पर सारा आरोप लगाने का
एक एक करके कुछ बार जानता को बेवक़ूफ़ बनाने का
फिर तो वक़्त हो ही जाएगा घर बैठ कर खाने का
यही है हाथी का दो दांत एक दिखाने का एक खाने का

इंक़लाब ज़िंदाबाद ………….पार्टी ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद

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