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रोज़ रोज़ एक न एक सभा एक मंच कभी भाजपा कि सभा तो कभी कोंग्रेस कि सभा आज यही शोर हर तरफ है कभी जनता मोदी जी के सभा में ताली बजाती है तो फिर वही जनता सोनिया जी और राहुल जी के सभा में ताली बजाती है कभी इनकी शिकायत उन से सुनती है तो कभी उनकी शिकायत इन से, ये जनता भी अजीब है इधर भी होती है उधर भी होती है हर भीड़ में होती है और इस भीड़ में तरह तरह के लोग होते हैं तरह तरह कि जनता जाती एक वो हैं जो सिर्फ लोगों कि भीड़ देख कर जाते है एक वो लोग हैं जो बगल वालों के साथ देने के लिए जाते हैं एक वो हैं जो हर हाल में उन्ही के दीवाने है एक वो हैं जो सबको परखने के लिए जाते हैं और सभी को देख कर वक्ता यही समझता है के ये है हमारी ताक़त ये है हमारी भीड़ ये है हमारी चाह कि भीड़, हम हैं इन सबके दिल में ये सब हमको ही चाहहते हैं .
आखिर ये तमाशाई बनी भीड़ हक़ीक़त में चाहती क्या है पसंद क्या करती है इसकी सोच क्या है इसकी ज़रुरत क्या है ये किसके तलाश में आयी है किस उम्मीद के साथ आयी है इसके दुखते नब्ज़ क्या हैं इनमे कौन हैं जो किसी मंज़िल कि तलाश में आये हैं कौन है जिनके घर में दिया नहीं है जो एक दीप कि तलाश में आये हैं जिनके सर पर एक छत नहीं है उसके जुस्तजू में यहाँ तक पैरों में छले दाल कर आये हैं किसी का मासूम दिल का टुकड़ा बेगुनाह जेल में बंद है उसको कौन छुड़ा लाएगा उस मसीहा के तलाश में हैं कोई इस उम्मीद में आया है के काश इन वक्ताओं में कोई तो हो जो ये कहे के हम गरीबी मिटाने आये है गरीबों को नहीं यहाँ इन भीड़ में ऐसे भी हैं जिनका दिल जिनकी कान ये सुनने के लिए बेचैन होता है कोई कह दे अब कोई गरीब नहीं रहेगा मगर नहीं जनता लौट जाती है लोगों कि शिकायतों के साथ आलोचनाओं के साथ जिन्हे कुछ नहीं आता हाथ शायद यही है भारतीय जनता का नसीब, ये भीड़ होती है सिर्फ इनको शोहरत दिलाने के लिए इनको मशहूर करने के लिए इनकी तक़दीर होती है ये भीड़ , भागती ही रहती है भीड़ कभी इस मंच के तरफ तो कभी उस मंच के तरफ आखिर कब तक भागती रहेगी ये भीड़ .
अगर कैलकुलेटर से हिसाब लगाया जाय तो जितनी दौलत खर्च करने के बाद संपन्न होता है ये चुनाव और आते हैं परिणाम आखिर इस से किसका होता है भला जनता का उस भीड़ का या सिर्फ उस नेता का जिसके पीछे भाग रही थी भीड़ , भीड़ भाग भाग कर थक जाती है हार जाती है नाउमीद हो जाती है और वही कल के वक्ता आज के नेता नज़रों से ओझल हो जाते हैं दौलत कमाते हैं खुद को होशियार कहलाते हैं आखिर में उनके खर्च को भी अपनी कमाई से पूरी करती है यही भीड़ मंहगाई के शकल में विकास के लिए आये हुए पैसों के घोटालों के शकल में आखिर कार चलते चलते भागते भागते थक जाती है ये भीड़ टूट जाती है ये जनता मायूस कि मायूस रह जाती है ये जनता तलाश नही कर पाती है अपना सही रहनुमा सही लीडर सही नेता सही मसीहा जो दिला सके निजात इन तमाम मुसीबतों से तमाम मजबूरियों से तमाम परिशानियों से .
ये जनता अपने घर कि चूल्हा जला नहीं सकती अपने बच्चे को कोई अच्छी तालीम दिला नहीं सकती अपने सर पर एक छत बना नहीं सकती अपने अँधेरे घर में एक रौशनी के लिए दीप जला नहीं सकती मगर इनके बहकावे में आ सकती है इनके लिए नारा लगा सकती है इनके लिए दो मिल पैदल चल सकती है इनके झंडे इनके बैनर लगा सकती है इनके लिए जान दे सकती है इनके लिए क़ुर्बान हो सकती है मगर अफ़सोस कि इंतहा ये है के ये नेता लाखों करोड़ों का मंच बना सकते है हेलीकाप्टर पर चल सकते हैं ठन्डे माहौल को गर्म करने के लिए दंगे करवा सकते हैं जनता को आपस में लड़ा सकते हैं किसी कि मूर्ति पर करोड़ों खर्च कर सकते हैं जिसमे इनका नाम हो मंदिर मस्जिद के नाम पर चंदा उठा सकते है शत पात कि राजनीति कर सकते है मगर ये नहीं होगा के एक गरीब कि झोंपड़ी बना दें एक बस्ती बसा दें इन तमाम फज़ूल खर्ची के पैसों से किसी गरीब कि बेटी कि डोली सजा दें उनके बहते आंसुओं को रोक कर चेहरे पर ख़ुशी ला दें गरीबों के दुःख दर्द को बांटे उनकी मुसीबतों को कम करें. नहीं ऐसा कौन है जो सोचे कौन है जो आगे आये ये नारा लगाए क्या आज फिर कोई महात्मा गांधी पैदा होगा क्या सुबाष चन्द्र बोस वापिस आयेंगे क्या रबिन्द्रनाथ टैगोर , राजेन्द्र प्रसाद , अबुलकलाम आज़ाद गुलज़ारी लाल नंदा बन कर कोई वापिस आएगा नहीं आज हमें थकना नहीं थकाना होगा भागना नहीं भगाना होगा इनके मंच और इनके झूठे वादों से बाहर निकलना होगा इनके रैलियों और इनके रथों का बाईकाट करना होगा इनके चिकनी चपड़ी बातों को भूलना होगा और हमें उनको नेता बनाना होगा जो हम में से हो हमारे जैसा गरीब हो हमारे बिच रहने वाला हो हमारे दुखों को समझने वाला हो जब चाहे हम से मिलने वाला हो हमारी उमीदों पर पूरा उतरने वाला हो देश को चने वाला हो नफरत और ज़ात पात से ऊपर उठ कर सबके दिलों में बसने वाला हो चाहे वो जिस दल का हो मगर सबके लिए दिलवाला हो अच्छी नियत वाला हो साफ़ सुथरे विचार वाला हो सबका जान्ने वाला हो देश और गांव कि सेवा करने वाला हो .
यही हम सबका नारा हो यही हमारा विचार धारा हो जो हमारा हो वो तुम्हारा हो वो सबका दुलारा हो .
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
अब न समझोगे इन्हे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दुस्तां वालों
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानो में
अगर हम चाहें तो :
हमको मिटा सकें ये नेताओं में दम नहीं
हमसे हैं ये नेता नेताओं से हम नहीं
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