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ढेर योगी मठ का उजाड़ .

Great India
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बरबादिये गुलिस्तां के लिए एक ही उल्लू काफी है
हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा

मुझे उम्मीद है के आप लोगों को ये शेर बिलकुल ही समझ में आ गया होगा और मैं ये कहूँ के मेरा उन्वान ” ढेर योगी मठ का उजाड़ ” और ये शेर दोनों एक दूसरे को साबित कर रहे है क्यूँ के दोनों में ही बर्बादी नज़र आ रही है और इसी के सिलसिले में मैं आज कुछ कहना चाहता हूँ और अपने प्यारे और अज़ीज़ भारत के उन मासूम और नेक और हर कोने कोने में बसने वाले लाडलो अपने देश कि खातिर अपनी धन दौलत और घर का घर लुटा देने वाले शहीदों के चाहने वालों अपनी मादरेवतन पर सब कुछ निछावर कर देने वाले भारतवासियों को एक फ़िक्र और सबलोगों का ध्यान उस तरफ ले जाना चाहता हूँ जहाँ हमारे देश का भला और बोल बाला और अपने वतन कि शान को बरक़रार रखने में मदद मिल सकती है हम लिखते तो बहुत अच्छे हैं सुनते बहुत कुछ हैं देखते भी बहुत कुछ हैं मगर हम शायद इन तमाम बातों को गम्भीरता से नहीं लेते इन पर अपना समय उतना खर्च नहीं करते जितना होना चाहिए हमारे पास डिग्री तो है डिप्लोमा तो है मगर विज्ञानं में हिसाब किताब में इतिहास में बहुत साडी विषयों में और हम चाहते भी हैं तरककी करना खुशहाल रहना अच्छी गाड़ियों पर सफ़र करना अच्छे और पक्के मकान बनाना नाम रौशन करना ये ख़ाहिशें सबकी होती हैं हर इंसान इसी सोच में मगन रहता है कोशिश भी करता है और कुछ तो कामयाब भी हो जाते हैं कुछ पैसे कि कमी से साधन कि मजबूरी से अपनी मंज़िल से दूर रह जाते हैं कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ सपना तो सजाते हैं मगर उस राह पर चल नहीं पाते हैं शुरू ही नहीं कर पाते हैं जो शुरू भी नहीं कर पाते हैं वो या तो इतने बड़े घर के होते हैं जिनको किसी चीज़ कि कमी ही नहीं होती उनके रास्ते बदल जाते हैं कुछ ऐसे हैं जिनके घर में कमाने वाला एक खाने वाले अनेक इन भीड़ में ये खो जाते हैं इनके इरादे इनके सपने चूर चूर हो जाते हैं मगर कुछ ऐसे भी होते हैं जिनका इरादा मुसम्मम होता है अडिग होता है जो लक्छ्य रखते हैं के हमें उस मंज़िल तक जाना है चाहे जो कुछ हो घर दुवार छूटे चाहे ये समाज छूटे मुझे उस मंज़िल तक पहुंचना है तो पहुंचना है वैसे लोग यक़ीनन पा लेते हैं मंज़िल छु लेते हैं उन उंचाईओ को जो कठिन होता है उन लोगों के लिए मुश्किल और नामुमकिन होता है उन लोगों के लिए किसी ने खूब कहा है .

इंसान कब किसी का आसरा एहसान लेता है : वही कर गुज़रता है जो दिल में ठान लेता है

ठीक उसी तरह आज हमारे देश और समाज में भी वैसा ही कुछ नज़र आ रहा है हर जगह भीड़ ही भीड़ हर नुक्कड़ पर तमाशा ही तमाशा है हर तरफ साहूकार ही साहूकार हैं आज बात आतंकवादी कि सभी करते हैं अतिचारी और बलात्कारी कि सभी करते हैं न्याय और अन्याय का चर्चा हर इंसान के ज़बान पर है हर आदमी को दूसरे के झूठ से बहुत नफरत है अपनी झूठ से मोहब्बत है तेजारत है सियासत है दूसरा करे तो बलात्कार है खुद करे तो शान है इस लिए के पैसे पर ताक़त पर बड़े बड़े नेताओं तक पहुँच पर गरूर है घमंड है आज हर वर्ग हर ज़ात हर पार्टी में इतना खुदगर्ज़ी आ चूका है के किसी को अपने भाई कि तरककी अपने ही ज़ात कि तरककी और देश कि उन्नति से किसी को कोई मतलब नहीं हम इतने स्वार्थी हो चुके हैं के नाजाएज़ खर्च चाहे जितना कर दें कोई परवाह नहीं अगर एक मासूम बच्चा एक रोटी के लिए सवाल करे तो उसे देने के लिए कुछ नहीं ऊपर से उसके गरीबी पर तंज़ उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं अगर हम भी उस दौर से गुज़रे हैं तो उस दौर को भूल जाते हैं ऊँचे उड़ानों के ध्यान में वो सब कुछ बूल जाते हैं जो खुद पर कभी आया था इस पर भी एक शेर है :

वो कमज़र्फ गुब्बारे जो चाँद ही साँसों में फूल जाते हैं : करते ही परवाज़ अपनी औकाते भूल जाते हैं

आज पूरी समाज को बर्बाद करने के लिए एक चोर ही काफी है वो चाहे तो सबकी दौलत और सबकुछ एक एक करके ख़तम कर दे मगर यहाँ तो समाज के काफी लोगों के अंदर हम में हमारे घर में सबके अंदर ये लत लग चुकी है और पुरे तालाब को गन्दा करने के लिए एक ही गन्दी मछली काफी है अगर पूरी मछलियां ही वैसी हो जाएँ तो क्या हाल होगा मेरे कहने का साफ़ साफ़ मतलब ये है के आज कि राजनीति के हर पार्टी हर दल में ऐसे ऐसे लोग आ चुके हैं जिन्हे इस से कोई मतलब नहीं के जनता का क्या होगा जनता को चाहिए क्या जनता कि ज़रुरत क्या है उन्हें सिर्फ यही पता है के दूसरे पार्टी कि जितनी शिकायत और खिंचाई कि जायेगी उतनी ही जनता खुश होगी और हमें हमारे मक़सद में कामयाब कर देगी कभी हम ने सोचा है के अगर आज जिस तरह से रोज़ एक नयी पार्टी बन रही है रोज़ एक नया नेता पैदा हो रहा है ५४५ कुर्सी है और ५०० पार्टी हो जाए सबको एक या दो या तिन सिट मिले तो कौन होगा कुर्सी का हक़दार नतीजा यही होगा के दो सौ पार्टियां मिल कर सरकार बनाएंगी जो सरकार लंगड़ी लुल्ही कठपुतली बनेगी जो जितना चाहें लूट लें फिर तो कहना ही है के मैं क्या करू मेरे तो पुरे संसद में चार ही सांसद थे अबकी पार पुरे पुरे जिताओ और देखो मैं क्या करता हूँ मतलब ये है के आज जिस तरह कि पार्टियां बढ़ रही हैं स्वार्थी और भराष्ठ नेताओं का सैलाब आ रहा है उम्मीद नज़र नहीं आती के किसी एक पार्टी कि सरकार बने फिर आने वाले ५ साल के बाद वही राग वही शिकायत वही कहानी होना तय है . आज पुरे मंच से खिंच तान शिकवा शिकायत आरोप प्रत्यारोप के एलवाह कोई बात ही नहीं हो रही है आज ये संसद फिर शर्मसार होने के कगार पर है जिस तरह हर तरह के कानून में संशोधन कि गुंजाईश है उसी तरह इन नेताओं के लिए तो कुछ संसद कर सकती है मगर कैसे होंगे सभी का हाल वही है हर आदमी ऊँची कुर्सी का खाब देख रहा है जिसे दिल करता है एक पाती बना लेता है सबका एक ही तर्क है के ये पार्टी ठीक नहीं ये पार्टी चोर है तो अगर इसी तरह से रोज़ पार्टियां बनती रही और सब लोग प्रधान मंत्री ही बन्ने का खब देखने लगे तो पता चलेगा के देश कि जनता चुनाव में ही अपनी पूंजी लुटाती रहेगी न किसी एक को बहुमत मिलेगी न सरकार ५ साल चलेगी किया इन योगियों इन नेताओं को एक वोट और जनमत के ज़रिये दो हिस्सों में बाँट कर नहीं रखा जा सकता के जनता को इन्ही दो में से किसी एक को चुनना है जब एक पार्टी को पूरी बहुमत मिलेगी फिर उस से पुरे पांच साल का हिसाब देना होगा वो किसी के सर अपना ठीकरा फोड़ नहीं सकता फिर उन दोषियों को हवालात कि हवा ऐसे खिलाया जाय के दोबारा जनता के हक़ से खिलवाड़ करने के काबिल ही नहीं रहे अगर कानून बनाना सम्भव नहीं तो हम उन्ही में से उनको वोट दें जो बहुमत के काबिल हैं उन लोगों को बाहर का रास्ता दिखाएँ जिनकी तादाद पुरे भारत में दो या चार होती है हम ज़ात पात भाईचारगी धर्म या दोस्ती के वोट से बाहर आकर देश कि उन्नति और तरककी के लिए एकत्र होकर एक के हाथ में बागडोर दें और समय आने पर एक से ही पायी पायी का हिसाब लें क्या ये मुमकिन है हाँ है उस वक़्त जब हम खुद एकत्र हों एक मेज़ाज के हों एक सोच के हों हर मामले में भले अलग हों मगर देश हित में एक हो जाएँ .
आज हर धर्म में गुटबंदी हर पार्टी के वर्करो में गुटबंदी हर आदमी अपने को समझदार कहता है फिर भी बातो बातो पर तकरार करता है सिर्फ अपनों से ही प्यार करता है ये इंसान कि फितरत है के अपने को चालाक और अच्छा समझे आज जितनी भी पार्टियां हैं नेता हैं कोई ये नहीं कहता के हम से जो गलती हुयी सो हुयी अब नहीं होगा कोई इंसान ये नहीं कहता के मैं सीखना चाहता हूँ जानना चाहता हूँ जो कुछ बोल रहा हूँ उसे परखना चाहता हूँ के मैं गलत हूँ या सही .

पता नहीं मेरी समझ कैसी है मेरा सोच कैसा है इस पर आप सबकी राय जानना चाहता हूँ इंतज़ार करूँगा .

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