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मेरे गुरु मंगायो वेदन भेद
पहली भिक्षा अन कि लाना
गांव नगरिया पास न जाना
हिन्दू तुर्की छोड़ के लाना
लाना झोली भर के
दूजी भिक्षा जल कि लाना
कुआँ बावरी के पास न जाना
ताल तलैया छोड़ के लाना
लाना तुम्बी भर के
तीजी भिक्षा मॉस कि लाना
जिव जंतु के पास न जाना
ज़िंदा मुर्दा छोड़ के लाना
लाना हांडी भर के
चौथी भिक्षा लकड़ी लाना
गाछ बृक्ष के पास न जाना
गीली सुखी छोड़ के लाना
लाना गठ्ठर बाँध के
कहत कबीर सुनो भाई साधू ये पद है निरवाना
जो इस पद का अर्थ लगावे हो वही चतुर सुजाना
हम एक साथ जब बहुत सी बातों पर सोचते हैं तो दिल और दिमाग़ जिनका अलग अलग काम है दोनों में कुछ क्षण के लिए एक विवाद खड़ा होता है दिल जिस से सहमत होता है दिमाग़ उसको रोकता है यहाँ इंसान अगर बिना गुरु का है तो उलझ जाता है और उसे ज़रुरत पड़ती है एक ऐसे गुरु कि जो उसके मन और बुध्धि में मचे घमासान को शांत कर सके और उसे सही मार्ग दर्शन दे सके अब शुरू होती है गुरु कि तलाश अगर गुरु का खोज करने वालों में भी फ़र्क़ है एक वो है जो खुद से खूब सोचा विचारा और सही उत्तर नहीं पाया उसका खोज उत्तम है उसे वो गुरु चाहिए जो उसे संतुष्ट कर सके क्यूँ के वो सागर का प्यासा है उसे नदी नाला संतुष्ट नहीं कर सकता है तो उसे मिलते हैं वो गुरु जिनकी एक नज़र से ही वो संतुष्ट हो जाता है क्युंके इस्लाम धर्म के अनुसार गुरु वही है जिस पर नज़र पड़े तो अपने आपको सामने वाले मनुष्य ( गुरु ) के दर्पण में अपना झलक देख ले और परमात्मा कि याद आ जाए और उसका दिल पहले ही मान ले के यहाँ हमें कुछ मिल जाएगा फिर शुरू होता है ज्ञान का और मन में उठे हलचल का निवारण .
अब ज़रा देखा जाय के दूसरे प्रकार का गुरु खोजने वाला कैसा है और उसे कैसा गुरु मिलता है अगर एक बात में बात ख़त्म करना है तो यही काफी है के जो जिस स्तर का गुरु चाहता है उसे उसी के हिसाब से मिल जाता है अब जैसी चाह वैसी राह अब कुछ ऐसे भी हैं इस धरती पर जो खुद से ही गुरु हैं जिनका ये मानना है के जो देखा है उसी को मानेगें जो नज़र नहीं आता उसको मानना ही बेकार है वो भी झूठ है अब सवाल ये है के जब तक किसी भी चीज़ का आकार नहीं बढ़ता उसमे उतना ही सामान आएगा जैसे ५ लीटर दूध का एक बर्तन है तो उसमे ५ लीटर ही आएगा अगर उसमे ६ लीटर रखना है तो उसका अकार बढ़ाना होगा या उतने से ही काम करना होगा कियूं के अकार बढ़ाने के लिए और भी मेहनत करनी पड़ेगी उसे काट कर और उसमे जोड़ना होगा जितना था उस से ज़ेयादह बिना परिश्रम और कष्ट के होगा नहीं . उसी तरह आज हम भी शिक्षा प्राप्त करते हैं अपने आकार और क्षमता के हिसाब से कोई बैध कोई अधिवक्ता कोई इंजीनियर तो कोई ड्राईवर तो कोई वैज्ञानिक कोई महाज्ञानी बन जाता है अब अगर सबसे कहा जाय के सब लोग सबके विषय पर दस मिनट बोलें और समझाएं तो मेरा अंदाज़ा है के सभी चुप हो जायेंगे मगर सबसे ये कहा जाय के सब लोग धर्म और एक ईश्वर के बारे में बताएं तो उमीद है के सब लोग कुछ न कुछ ज़रूर बोल ही देंगे वो इस लिए के वही एक विषय है के जिस पर किसी का मतभेद नहीं किसी को इंकार नहीं है और यही वो मार्ग दर्शन देता है जिस से परिवार से प्रेम परिवार कि रक्षा समाज से प्रेम देश कि भग्ति स्वर्ग व नर्क का ज्ञात कराता है धर्म को बहुत ही गहराई से सोचें के आखिर ये है क्या और ये आया कैसे इसका लेखक इसका प्रवर्तक है कौन इसके सिध्धांत हैं क्या ये चाहता क्या है इसका मक़सद क्या है जो इस पर चलता है उसे क्या मिलता है जो नहीं चलता उसे क्या मिलता है .
मेरी समझ और बुझ के अनुसार
धर्म
एक क़ानून है एक नियम है जो मनुष्य को सही मार्ग देता है जिसमे वो सारे नियम एक एक करके लिखा जा चूका है जो मनुष्य के आगमन से लेकर प्रस्थान तक और मनुष्य के अंतिम पड़ाव { स्वर्ग या नर्क } तक के मार्गों को अंकित किया जा चूका है जिसमे कोई संशोधन या बदलाव कि गुंजाईश नहीं है उस में वो सब कुछ है जो इंसान को चाहिए बस मन और समय चाहिए के अपने सवाल को उस धर्म के पन्नों में से ढूंढ सके संसोधन इस लिए नहीं हो सकता क्यूँ के ये धर्म संविधान किसी मनुष्य का नहीं किसी एक विषय के जानने वाले शिक्षित इंसान का नहीं है किसी बड़े एक देश प्रगतिशील देश के सबसे बड़े ज्ञानी और संत या साधू का लिखा हुआ नहीं है क्यूँ के हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बातो को सबूत के लिए शक्तिशाली और विश्वसनीय किताब या मनुष्य से गवाही ली जाती है तब उस पर भरोसा किया जाता है इस लिए ये धर्म संविधान ऐसे शक्तिशाली का है जिस से ऊपर या पहले कोई है ही नहीं तो इस धर्म नियम को साबित हम किस से कराने जायेंगे उस से ज़यादह कौन जानता है के इस में संशोधन करेगा लिखने वाला क्या नहीं जानता जो उस से छूट जाएगा.
लेखक उस धर्म संविधान का
क्या हमने हवा को देखा है नहीं, मगर मानते हैं क्युंके महसूस होता है के हवा चल रही है क्या हमने अपनी आत्मा को देखा है नहीं, मगर पता है के है तभी हम जी रहे हैं क्या हमने स्वर्ग को देखा है नहीं, मगर मानते हैं के है जब हम विदा होंगे तो उसी में जायेंगे क्या हमने नर्क को देखा है नहीं , मगर जानते हैं विश्वास है के है जो उनलोगों के लिए है जिनके दिल में यतीमो से प्रेम नहीं इन्साफ से कोई वास्ता नहीं हर तरह के उस काम से जिसे मनुष्य का बड़ा हिस्सा पसंद नहीं करता है क्या हमने उन जिव जंतुओं को देखा है जिसको रोज़ का खाना आहार मिलता है वो जीते हैं जिसे इंसान देख नहीं सकता है एक बात जो उसी मालिक का पता बताता है उसकी ताक़त का अंदाज़ा कराता है वो ये है के एक बार सुलैमान ( अलैहिस्सलाम ) जिन्होंने दुनया के सभी जीव और जंतुओं पर हकूमत किया है सबकी भाषा जानते थे उन्होंने एक बार दावते आम किया एलान किया के सबको बता दो के कल का खाना मेरे तरफ से दिया जाएगा कोई मनुष्य कोई जिव जंतु बाक़ी नहीं रहे हवा को हुक्म हुआ दावत घुमा दो जो जहाँ है उसका वहीँ इंतज़ाम हो गया दावत शुरू हुयी जो जहाँ था वही खाया कहीं से भी एक भी प्राणी को छूटने कि खबर नहीं मिली दूसरे दिन जब हज़रत सुलैमान ( अ .स ) एक नदी के किनारे पहुंचे तो आवाज़ आयी ऐ सुलैमान इस पत्त्थर पर अपनी छड़ी मारो जब छड़ी मारा तो पत्त्थर दो हिस्से में हो गया और देखा के एक कीड़ा है जिसके मुंह में एक बिलकुल हरा पत्ता है ये देखते ही उस मालिक से माफ़ी माँगा और कहा ऐ रब मेरी ताक़त नहीं के मैं तुम्हारी मख्लूक़ ( जिसको तुमने पैदा किया है ) को खाना खिला सकूं तुही है जो सबकी रोज़ी सबकी जगह पर पहुंचता है और तुम से बड़ा बादशाह और मालिक कोई नहीं . तो वो है जिस के निगरानी और इशारे पर इस जहां का पूरा इंतज़ाम चल रहा है वही है ईश्वर अल्लाह जिस ने सजाया और इतना खूबसूरत दुनिया बनायी सबसे पहले उन तमाम चीज़ों से दुनिया को भर दिया जो इंसान के काम आये तब अपनी हिकमत और कुदरत से सबसे पहले आदम ( अ स ) को बनाया और फिर शुरू हुआ दुनिया को इंसानो से भरना .
अब हमारे लिए एक संविधान बनाया रब ने और हम में से ही एक एक को चुन कर कुछ कुछ फरमान भेजता रहा जो हमें उसके बताये हुए रास्ते पर चलने के लिए उसके सन्देश देने वाले देते रहे उसके उस कानून को हम तक पहुंचाते रहे जो मानता गया उस का होता गया जो इंकार करता गया उस से दूर होता गया दुनिया में बसने वाले अपनी अपनी भाषा बोलने लगे जो जैसा सिखा वैसा ही होता गया कानून लाने वाले लाते रहे जातां करने वाले करते रहे जिसने जातां किया उसने उस मालिक को भी पहचान लिया उसका जब हो गया तो दुनिया भी उसकी होती गयी दुनिया उसके करीब होती रही जो उसके पास गया उसकी सेवा किया उस से भेद सिखा वो उसका होगया जो उसका होगया वो शिष्य बन कर गया था वो भी गुरु हो गया उसे भी गुरु बना दिया गया उन्ही गुरु में से एक गुरु कबीर दास भी बने जो कभी किसी गुरु के शिष्य थे गुरु तो गुरु ही होता है वो जिसका शिष्य था उसी तरह का गुरु बना उसी तरह का उसका भी शिष्य होगा .
बिना गुरु का ज्ञान नहीं होता उसी गुरु कबीर ने अपने शिष्य से ये भीख मंगाया और उस शिष्य ने पूरा कर दिखाया के हर सवाल का जवाब है मगर वो जाने जो गुरु से सिखा है यही हैं वो भेद जो मिलता नहीं बिना गुरु के ये सेवा और मनुष्य के उस परिश्रम के बाद मिलता है जिसका होना सबके लिए सम्भव नहीं जिसके अंदर सत वचन और अधीनता हो मानवता हो प्यार हो सत्कार हो दुनिया का लोभ न हो किसी प्राणी से नफरत न हो वही उस गुरु का शिष्य है जो एक दिन खुद गुरु बनकर लोगों को ईश्वर का उपदेश देता है जिसे दुनिया स्वीकार करती है सम्मान करती है और सत्य तो ये है के दुनिया के रखवाले उस ईश्वर के दूत यही वो गुरु हैं जिनका धर्म कर्म और इच्छा सिर्फ हर प्राणी कि रक्षा के लिए समर्पित है .
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