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हर बड़े में बड़कपन क्यूँ नहीं ?

Great India
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अगर हम कुछ सवाल को खुद से पूछें और ज़िन्दगी का तजुर्बा करें तो बहुत सी बाते साफ़ हो जाएंगी और हम समझ सकते हैं तो अपने दिल को समझा लेंगे के हम कौन हैं और हमें कैसा होना चाहिए हमारा अपना फ़र्ज़ क्या है क्यूँ के हम अपने बच्चों , भाई , बहन , हर छोटो और अपने घर का वो रहबर लीडर नेता मुखिया और दीपक हैं जिसकी रौशनी सब पर पड़ती हैं और सबके रास्ते हम से ही होकर निकलते हैं हमारी सभ्यता और हमारे तरीक़े हमारी आदतें ही उनका मार्गदर्शन बनते हैं इस लिए के ये दुनिया हम से और हमारे लिए बनी है इंसान अशरफुल मख़लूक़ात ( यानि जितनी भी चीज़ें जिव जंतु जो ईश्वर कि रचना है उसमे सबसे उत्तम और महान मनुष्य ) है दिन, रात , धुप , छांव , गर्मी , बरसात , नदी , समुन्दर , पहाड़ , ज़मीन, आसमान , सांप , बिच्छू , शेर , हाथी , छोटे बड़े पेंड पौधे यानि के हर चीज़ से इंसान लाभ उठाता है हर चीज़ को अपने प्रयोग में लाता है सब पर हकूमत करता है सबको अपना पालतू बनाता है जिसकी भाषा हम नहीं जानते जिनकी बातें हम नहीं समझते उन्हें भी हमारी भाषा समझ में आने लगती है और वो हमारे हुक्म पर चलने लगते हैं जैसे हाथी पर हमारी हकूमत कुत्ते पर हमारी हकूमत घोड़े पर हमारी हकूमत बहुत ऐसे जानवर हैं जिन पर हम अपनी हकूमत चलाते हैं जो हमारा काम करते हैं और हमारे इशारे पर चलते हैं आखिर क्यूँ और कैसे हमारी ताक़त उन से कम है अगर हाथी चाहे तो हमें पहाड़ सकता है घोडा चाहे तो हमें रौंद कर मार सकता है कुत्ता काट ले तो चौदह सुई लगेगी और लगती है सुई रौंदते हैं घोड़े फाड़ता है हाथी मगर किसे जिसे इनसबको पालना नहीं आता जिनमे प्यार नहीं होता जिनमे इनकी हमदर्दी नहीं होती उन्हें ये न मानते हैं नहीं पहचानते हैं ये उसी के होते हैं जिसके ये हो चके होते हैं क्यूँ के इंसान वो भी है जिसकी ये हिफाज़त नहीं करते इंसान वो भी है जिसकी ये गुलामी करते हैं मगर दोनों हैं इंसान ही फिर वजह क्या हुयी के ये जानवर एक कि इज़ज़त करे एक से प्यार करे एक कि गुलामी करे दूसरे के जान का प्यासा बने बात यही समझ में आती है के जो इंसान बड़ा तो है सबसे उत्तम तो है मगर बड़कपन उस में नहीं है उत्तम तो है मगर उस में वो गुण नहीं जो होना चाहिए .

आज का हर बड़ा सिर्फ इस लिए बड़ा है के

अपने घर के सदस्यों में सबसे बड़ा है आज़ाद है जो चाहे वो करे किसी से उसे डर नहीं किसी कि आदर नहीं .
ये इंसान सब पर हकूमत करना जानता तो है मगर प्यार करना मालूम नहीं सिर्फ गुस्सा ही गुस्सा भरा है अच्छे संस्कार नहीं जो उसे नहीं मिला अपने बड़ों से वो क्या देगा छोटो को जो नहीं जनता आदर करना छोटो का वो क्या करे आदर बड़ों का उसे सिर्फ यही पता है के ये छोटे हम से छोटे हैं इनका काम है सिर्फ मेरी बात मानना जो मैं कहूँ वो ये करें जो मैं करू ये मत करें हम शराब छूट कर पियें जुआ हम खेलें इनको गाली हम दें इनके छोटी गलती पर सजा हम दें ये हमारी बात माने इस लिए के हम इनके बड़े हैं अरे भाई इसी लिए तो आज ये हम पे पड़े हैं हमसे दो कदम आगे खड़े हैं हम ने जो नहीं किया ये हमारे कल के छोटे आज जेल में भी सड़े हैं इस लिए के हमारी आदत ही इन पर पड़े हैं .

अपने गांव में सबसे बड़ा पैसे वाला है रॉब वाला है ताक़त वाला है सभी उस से डरते हैं .
हमारी झूटी इज़ज़त पुरे गांव में है क्यूँ के हम लाठी और ज़ुल कि हकूमत करते है सभी हमारे क़र्ज़दार हैं सब लोग डर के बीमार है हमारी समझ इतनी बेकार है के हम आने वाले कल से बिलकुल बेखबर हैं जिसे चाहें आज गली दें जिसे चाहे बे इज़ज़त करें जिसे चाहे जो करें क्यूँ के सिर्फ हमारे पास ही है इनका इलाज आज जबके ये बातें बहुत कम रह गयी हैं मगर बहुत से ऐसे गांव हैं जहाँ इनका ज़ुल्म चलता है इन्ही कि हकूमत चलती है इसी को बड़कपन ये समझते हैं जिसे चाहें दो चार गाली ये दे देते हैं जो चाहें जब चाहें सजा भी ये देते हैं थाना के दरोगा जी भी इन्ही कि जी हज़ूरी करते हैं क्यूँ के सबसे बड़ा शराब का बोतल भी यही देते हैं अगर किसी गरीब का ज़मीर जग उठा तो थाने में भेजवा देते हैं चोरी गद्दारी का इलज़ाम भी लगवा देते हैं क्यूँ के दरोगा जी भी इन्ही अमीरों से जीते हैं .

अपने विभाग में सबसे ऊँची कुर्सी पर बैठा है सभी उसके निचे हैं सभी उसके आज्ञा का पालन करने वाले है .
ये भी नए बड़े साहब हैं इन्हे भी अपने वक़्त के जैसे छोटो से मोहब्बत ख़तम हो चुकी है कल सबकी दुआएं लेते थे के इस कुर्सी पर बिराजमान हो जाएँ कहते थे आ गया तो सबका कल्याण हो जाए मगर आज जब कुर्सी मिली तो बड़कपन को भूल गए दादा के आयु वालों को तुम चाचा के आयु वालों को रे कह कर ये भी अपनी औक़ात भूल जाते हैं सबको एक ही डंडे से घुमाते हैं अपना फ़र्ज़ तो फ़र्ज़ है अपनी वो बात भी भूल जाते है अगर इन्हे कुछ याद दिलाया जाय तो कहते हैं के घोडा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ये है इनका अपने पद का घटिया सोच .
अपने पार्टी में सबसे बड़ा है ज़ेयादह शक्तिशाली है पर्भावशाली है खूंखार है सभी उसके सामने बेकार हैं .
ये सबसे बड़े मनुष्य हैं जिन्हे हर पांच साल पर ये याद आता है के जनता के मजबूर हैं जब आम जनता थे तो कुछ बड़कपन नज़र आता था लोगों में घुलते मिलते ज़मीन पर ही बैठ कर सच्चाई और धर्म से लेकर कर्म का पाठ पढ़ाते थे किसी को बेटा किसी को चाचा किसी को भाई कहते थे जब टिकट मिल गया तो पांव पर भी गिर जाते थे आशीर्वाद भी इनको प्यारा था बल्कि जितने के लिए यही एक सहारा था इनको पता था के यही इस चुनाव का किनारा था बड़कपन था इंसानियत थी एकता था मगर जब साहेब जित गए तो सब कुछ भूल गए पहला दौर तो बहुत से बहानों के भेट चढ़ गया दूसरे बार ज़रा तेवर बदल गया अब कुछ गुंडे भी इनके हाथ में हैं कुछ पुलिस वाले इनके साथ में हैं यार कपडा भी बदल गया बोली भी बदल गयी हाथ जोड़ कर बेचारे मुंह में बुदबुदा रहे हैं इन गरीबो के सामने हाथ जोड़ना पड़ रहा है गुस्सा और नफरत को ज़रा दिल में जमाये हुए जब घर गए तो न जाने कितनो को गाली भी देते हैं अरे जनाब बड़ा मंच मिल जाए सामने कुछ लोग नज़र आ जाए तो इतने खुश हुए के पूछिए मत आज ही जीत का जश्न भी मना लें अगर इनका बस चले तो इनका बड़कपन ऐसा के दादा के आयु के समान वाले विपक्ष के नेता हों या जनता उनकी खिल्ली उड़ने में माहिर जिसको जो चाहे नाम दें जो चाहें कह दें फिर जीत कर उस इंसाफ के मंदिर और देश का सबसे बड़ा पंचायत घर संसद में भी बड़कपन ये दिखाते हैं कुर्सी जूता न जाने कैसी कैसी ज़बान ये चलाते हैं यानि हर जगह ये अपने आदर सम्मान का जी जान से धज्जी उड़ाते हैं फिर भी खुद को महान और बड़े आदर्श और सम्मान वाले नेता मनुष्य अधिकारी बाप भाई और इंसान कहलाते हैं .

इस लिए ये सब खुद को अपने मुंह मियां मिठु बनते हैं इन्हे प्यार मानवता महानता आदर सत्कार और बड़कपन नहीं सिर्फ और सिर्फ इन्हे नाम अपना सम्मान अपनी इज़ज़त प्यारी है ऐसे घर के मुखिया को घर से मतलब नहीं बाप को बेटे कि इज़ज़त या घर कि इज़ज़त कि परवाह नहीं .
बड़कपन ये होता है के हम किसी छोटे को बाबू कहेंगे तो हमे भैया कहेगा आदर करेंगे तो आदर करेगा तुम कहेंगे तो दूर जाएगा सिर्फ ज़ुल्म करेंगे तो नफरत करेगा यही है बड़कपन के हमे अगर किसी से इज़ज़त चाहिए मोहब्बत चाहिए तो हमें पहले उस से करना होगा उसे प्रेम का पाठ पढ़ाना होगा आदत डालनी होगी बताना होगा के बड़कपन कहते किसे हैं जिस दिन हर बड़े में बड़कपन आ गया उस दिन हर छोटे में प्रेम सम्मान एकता और मोहब्बत कि किरणे हर तरफ फूट पड़ेंगी फिर न तो आतंकवाद होगा न तो नक्सलवाद होगा न तो जातवाद होगा न तो बलात्कार होगा अगर कुछ होगा तो हमारे घरों से सिर्फ राष्ट्रवाद का नारा होगा ज़ुल्म और भ्रष्टचार के खिलाफ हर घर से आवाज़ आएगी मोहब्बत कि सुगंध आएगी फिर हम एक नयी रौशनी देर से ही सही मगर काफी हिस्से में फैला सकेंगे अंधकार को भगा सकेंगे अपने देश पर इतरा सकेंगे फिर कह सकेंगे . मेरा भारत महान है .

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