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इस मंच से किसे क्या मिला ?

Great India
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पहला लेखक = श्रीमान ये आपका कैसा सवाल है के मंच से किसे क्या मिला आप को कुछ नहीं मिला ?
दूसरा लेखक = मुझे अगर बात समझ में आती तो आपसे ही पूछता के किसे क्या मिला चलिए आप बता दीजिये के आपको यहाँ से क्या मिला आपने क्या पाया फिर शायद मुझे भी याद आ जाए के हाँ मुझे भी कुछ मिला है .
पहला लेखक = लीजिये आपने मुझे ही फंसा दिया के मुझे क्या मिला अब तो मुझे ही बताना होगा के आज तक कि इस परिश्रम का फल मुझे क्या मिला तो सुनिये जब से मैं आया हूँ इस मंच पर मुझे काफी लोग जान गए और बहुत से लोग पहचान भी गए इस लिए के जो कुछ लिखा वो सबके लिए लिखा मैं अपने लिए तो कुछ लिखा ही नहीं और आपको पता है वैसे भी मंच पर अपने लिए कुछ नहीं कहा जाता है सब लोगों के लिए बक बक किया जाता है जितनी भी बातें मंच पर कि जाती हैं अगर सबको याद रखा जाय और उसी को दिमाग़ में बैठा लिया जाए तो फिर खुद के लिए सोचने के लिए बचेगा क्या अगर सब बातों को याद रखा जाए तो मुश्किल ही मुश्किल होगी यार मंच पर तो हम झूठ के लिए भी मना करते हैं भरष्टचार पर भी खूब चिल्लाते हैं यहाँ हम क्या क्या नहीं बोलते हैं अगर सब कुछ खुद ही मान लिया जाए तो फिर यहाँ से कुछ भी मिलेगा ही नहीं सब मिट जाएगा पता चला के ज़िन्दगी भर साधू बन कर इधर उधर भटकना पड़ेगा अरे आपको पता है यह मंच है ही इस लिए के अच्छी अच्छी बात कीजिये घड़ियाली आंसू निकालिये खूब लोगों से हमदर्दी करने का नाटक कीजिये यहाँ जो भी जनता हैं सब आपके बातों पर धयान देते ही हैं और आपको एक पहचान मिल जाती है काफी लोग पहचान जाते हैं हम ने तो बहुत कुछ कहा इस मंच पर सब लोग वाह वाह तो करते ही हैं मंच पर आने से ही प्रचार होता है लोग जानते और पहचानते हैं वोट मंच से ही मिलता है देखिये फूल का माला लोगों कि तालियां और शाबाशी भी तो यहीं से मिली है अच्छी अच्छी बात जब हम कहेंगे तो लोग हमारे हक़ में ही न वोट डालेंगे तो आप अपना दिमाग़ खोल लीजिये आप भी तो इसी मंच के हैं न इसी लिए बता रहा हूँ हम या सब पार्टी का मक़सद यही है के खूब नाम हो लोग जान जाएँ तभी तो मंच से वोट का मामला साफ़ होगा , लोगों कि भीड़ भी यहीं से जमा होती है यहाँ से या किसी भी मंच से ही लोगों में पहचान बनती है मेरी भी पहचान बनी है ,
दूसरा लेखक = अच्छा अच्छा तो आप लोग सिर्फ यही चाहते हैं मंच से हक़ीक़त कुछ और मंच पर बयान बाज़ी कुछ और मंच से फूल का माला नाम को फ़ैलाने के लिए ही मंच पर सब लोग जाते हैं यानि के मुंह से महान अंदर से बेईमान ऊपर से हमदर्दी और अंदर से गद्दारी अगर हम ऐसे ही हैं तो फिर हमें इस मंच या किसी भी मंच पर नहीं जाना चाहिए इसी वजह से तो जब हम लोगों से इज़ज़त पाते हैं जो लोग हमारा सम्मान करते हैं हमारी जय जयकार करते हैं हमें बहुत ही बड़ी कुर्सी देते हैं वही लोग एक दिन जब हम झूठे साबित होते हैं तो हमारी इज़ज़त उतार लेते हैं नज़रों से गिरा देते हैं अरे भाई यहाँ तक हो जाता है के हम अपने घर वालों के नज़रों से गिर जाते हैं कितनी बे इज़ज़ती होती है भाई जब हम जैल भी जाते हैं तो कैसा मंज़र होता है होना तो ये चाहिए के हम कहीं जाकर आत्महत्या कर लें ऐसी ज़िन्दगी जीने से क्या फायेदा ये कितनी बुरी बात है के हम झूठ , गाली , अत्याचार , बलात्कार से बचने के लिए बहुत कुछ लिखते हैं बोलते हैं अनशन भी करते हैं चिल्लाते हैं आंदोलन भी करते हैं ऐसे ही मंच से मगर जब बारी आती है तो खुद ही हम वो सब कुछ करते हैं यही वजह है के हमारी बात तो जनता बहुत दूर है हमारे घर वाले हमारे बच्चे भी हमारी बात नहीं मानते .
पहला लेखक = भाई आप तो सही कह रहे हैं मगर क्या किया जाय दुनिया भी ऐसे ही झूठे को पसंद करती है अब लीजिये न अगर हमारे शारीर पर अच्छा कपडा है और अच्छा सूट बूट है तो झूठ भी लोगों को सच लगता है अगर हम फटे पुराने कपडे में सच बोले और ये कहें कि दो दिन से खाना नहीं खाया तो लोग मुझे खानदानी और पेशावर भिखमंगा समझ कर भगा देते हैं तब मजबूर होकर हम भी वही रूप रेखा अपनाने में लग जाते हैं यानि के आज कल बिना पूंजी का सबसे ज़ेयादह फायेदा का यही व्यवसाय है आपको पता है अगर जनता भी ईमानदार हो जाए और खुद सच बोलना प्रेम करना बलात्कार से बचना हर एक का सम्मान करना शुरू कर दे तो हम खुद ही सुधर जायेंगे हम जनता को धोखा दे ही नहीं पाएंगे हमारी हर चाल इनको समझ में आ जायेगी और एक जागरूक जनता नेक और बेदाग़ नेता को ही अपना वोट देगी मैदान में सब होते हैं मगर जनता भी तो लालच और वकती फायेदा के चक्कर में भेद भाव और जज़्बात और अन्धविश्वास के लहर में बह जाती है आपको पता है के हर तरह के आदमी को उसके हिसाब से उसका साथी और उसके मैंने वाले मिल ही जाते हैं ये बात सही है के हम लोगों को भी अब सबसे पहले खुद को तमाम बुराईयों से पाक होकर नेक और एक बन कर किसी को भी अच्छाई का पाठ पढ़ाना चाहिए हम लोग गलत करते हैं के खुद तो वही काम करते हैं और दूसरों को करने से मना करते हैं इसी लिए समय आने पर हमारी इज़ज़त नहीं रहती बरसों से झूठ का पर्दा जो हम डाले रहते हैं जब पोल खुल जाता है तो हम कहीं के नहीं रहते हैं और हमारी बातो का कोई असर नहीं होता है चलिए अब हम वादा करते हैं के आज से हम लोग कोई भी गलती जान बुझ कर नहीं करेंगे और जो बोलेंगे उस पर पहले खुद चलेंगे तब उस बात को दूसरे से मनवाने का अपील करेंगे यही सही होगा आज हम दोनों को एक पाठ मिला के अब हम लोगों को उस बात के लिए मना नहीं करेंगे जो खुद करते हैं पहले खुद पर काबू पाएंगे तब जाकर कलम उठाएंगे वादा करते हैं . धन्यवाद धन्यवाद .

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