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लिव इन रिलेशन ( नए रिश्तों में ) भाग 1

Great India
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आज एक अजीब व गरीब बहस चल रही है समाचार पत्रों में टी वि पर हर नुक्कड़ और चौराहों पर ये बहस एक दिन किसी ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा करेगी जहाँ से हर तरफ के रास्ते बंद मिलेंगे हर चीज़ को तजर्बे के बाद अंतिम रूप दिया जाता है और तजर्बे के लिए जिस चीज़ को पर्योग किया जाता है उस के बारे में पहले से हमें सबर कर लेना होता है के अगर कामयाब हुआ तो ठीक है वरना इसे नष्ट ही समझा जाए यानि के हम जब तक कुछ बर्बाद नहीं करते तब तक उसकी नफा और नुक्सान का अंदाज़ा नहीं होता अब जो पहले अपनी सम्पति चीज़ को आज़माने के लिए दाव पर लगाता है उसके हिम्मत कि दाद देनी होती है मगर जिसके पास एक से ज़ेयादह हो तो दाव पर लगाने में उतनी परिशानी नहीं होती जैसे हमारे पास 200 रूपया है तो १०० रूपया का रिस्क लेने में कोई परिशानी नहीं क्युंके ज़रुरत १०० कि है वो है हमारे पास मगर किसी के पास १०० रूपया ही है खर्च चलाने के लिए उस से कहा जाय के तुम दाव पर लगाओ और लगाया मगर नष्ट हो गया वो पूंजी भी डूब गयी तो अब उसका क्या होगा वो कैसे ज़िंदा रहेगा उसको दो समय कि रोटी कहाँ से मिलेगा वो तो लूट गया ये एक बात थी .
अब उसी तरह हर औरत कि एक ही इज़ज़त परतिष्ठा मान सम्मान और सब कुछ होता है आज वो जब इस नए तजुर्बे में गयी और फेल हुयी कामयाब नहीं हो सकी तो उसका क्या होगा उसकी भरपाई कैसे होगी उसका मान सम्मान इज़ज़त का क्या महत्त्व होगा ये बिलकुल आज के बहस पर सीधा सवाल है अब इसके पछ में कौन कौन हैं विपक्छ में किसे होना चाहिए या हैं अब ज़रा तुलना करें दोनों का .
पक्छ में बोलने वाले जिन्हे ये चाहिए .
(१) ये वो औरतें हैं जिन्हो ने कभी भी भारतीय संस्क्रिति में खुद को नहीं ढाला मर्दो के लिबास को अपना लिबास बनाया मर्द और औरत के रहन सहन बोल विचार में कोई अंतर नहीं रखा .
(2) वो औरत जिसके पास पैसे तो हैं मगर उसे सकून नहीं .
(३) वो औरत या लड़की जो खुद को घर के कामो को नौकरी या गिरा हुआ बंधी हुयी गुलाम समझती है .
(४) उस औरत को अपने पतिदेव को पतिदेव कहने या पति परमेश्वर सामान होता है ये समझने कि शिक्षा से नफरत है .
(५) उस औरत को घर कि गृहणी या ( हाउस वाइफ ) कि ही बात बुरी लगती है इंद्रा गांधी , सोनिया गांधी , रानी लछमी बायीं , पुतली
बाई, और भी बहुत सी जांबाज़ नारियां जिन्हो ने देश और अपने सम्मान के लिए क्या नहीं किया उन के रस्म व पतिवर्ता और महानता
से भी महान बनना चाहती है .
(६) वो औरतें जो जब होंठलाली ( लिपस्टिक ) लगा लेती हैं तो पिता जी कहने से लाली ख़राब न हो जाए तो बदले में डैड कहना पसंद करती
है बेटी को आज डार्लिंग भी कहा जाने लगा है .
(७) वो औरतें जो जिस्म पर कीमती कपडा रखती तो हैं मगर मक़सद कुछ और होता है .

और भी कितनी चीज़ें लिखी जाएँ जो लिखने कि इजाज़त अपना ज़मीर नहीं देता शायद ये मेरी बातें बहुत लोगों को पसंद नहीं आएँगी मुमकिन है के उनके गुस्से का जवाब भी देना पड़े मतलब ये है के पूरी आज़ादी और बिना किसी भेद भाव के लोगों को ज़िन्दगी गुज़ारने कि ख़ाहिश है आखिर आज ये नौबत क्यूँ आयी इस सोच ने जन्म क्यूँ लिया ये सवाल बहुत ही अहम् और ख़ास है अगर मैं इस लम्बी बहस को बिलकुल छोटा कर दूं तो एक ही कारण है के हमारे घर से धर्म निकल रहा है और देश से कानून कि ज़िम्मेदारी ख़तम हो रही है अगर आज ये दोनों अपनी अपनी जगह पर चट्टान कि तरह कड़ी हो जाएँ और इनका मज़बूती से पालन हो तो आज भी ये बहस ख़तम हो सकती है और नारी प्यारी और नयारी दुलारी पूर्ण सम्मान और आदर के साथ आज भी पतिवर्ता निभाते हुए देश और समाज के काम आ सकती हैं .

अब जो इस को पसंद नहीं करेंगी वो सिर्फ एक तरह कि ही नारी है जो इस मॉडर्न और अंग्रेजी सभ्यता से बहुत दूर और जिनके आँगन में धर्म का पाठ रोज़ पढ़ा जाता है जिनके यहाँ घूँघट में भी झांसी कि रानी पैदा होती है सभी धर्म रीती में रहने के बावजूद भी आई एस बनती है धर्म और कर्म दोनों किताबो का सही अध्यनन करती है वो इस बहस से दूर ही रहेगी क्युंके जो आनंद और मज़ा एक के होक रहने में है वो आज़ादी में नहीं ये उसे खूब पता है .
फिर मिलते हैं दूसरे भाग में .

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