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इंसान को इंसान से ही इन्साफ चाहिए
इंसान को इंसान के ही ज़ुल्म से नेजात चाहिए
इंसान ही इंसान को पापी कहता है
इंसान ही इंसान का आरोपी होता है
इंसान ही इंसान को जेल भेजता है
इंसान ही इंसान के खिलाफ लड़ता है
इंसान ही इंसान को बुरा और भला कहता है
क्या सब इंसान इंसान हैं अगर हैं तो फिर टकराव क्यूँ अगर नहीं तो क्यूँ नहीं हैं सब इंसान क्यूँ नहीं बनते इंसान, इंसान को इंसानियत से नफरत क्यूँ इंसान को इंसान से मोहब्बत क्यूँ नहीं इंसान को इंसानियत का एहसास क्यूँ नहीं हम सब इंसान हैं तो हमारा अलग अलग काम क्यूँ अलग अलग आरोप क्यूँ जैसे ;
इंसान ही चोर है
इंसान ही बेईमान है
इंसान ही ज़ालिम है
इंसान ही बलात्कारी है
इंसान ही आतंकवादी है
इंसान ही नक्सली है
इंसान ही नफरत का मुखिया है
इंसान ही दबंग है
इंसान ही बेदर्द है
इंसान ही बेरहम है
इंसान ही कानून बनाता है
इंसान ही कानून तोड़ता है
इंसान ही इंसान के नज़रों में बुरा और गुनाहगार होता है और इंसान ही इंसान से इन्साफ के लिए बदलाव चाहता है आखिर ये इंसान ऐसा क्यूँ है इंसान अपने अंदर कि इंसानियत को ज़िंदा क्यूँ नहीं करता इंसानियत का पाठ क्यूँ नहीं पढता और जो इंसानियत से दूर है वो खुद को इंसान समझता क्यूँ है इंसान कहलाने में उसे शर्म क्यूँ नहीं आती हम खुद को इंसान भी कहते हैं और इंसानियत से बहुत दूर भी होते हैं और दूसरों को बुरा भी कहते हैं ;
पता चलता है के हर मनुष्य ( आदमी ) इंसान नहीं हर इंसान मनुष्य है मगर हर आदमी इंसान होने का दावा करता है वो इस लिए के आदमी और इंसान में अंतर नहीं करता.
आज आदमी चोरी करता है फिर भी खुद को इंसान समझता है
आदमी हत्या करता है फिर भी खुद को इंसान समझता है जबके किसी के ज़िन्दगी से खेल चूका होता है
आदमी दो के बिच नफरत फैलता है फिर भी खुद को इंसान समझता है जबके दो लोगों में जंग छिड़ चूका होता है
एक बलात्कारी आदमी भी खुद को इंसान ही समझता है जबके वो किसी कि ज़िंदगी को तार तार कर चूका होता है
इंसानियत , मोहब्बत , एकता , हमदर्दी , का पाठ हम क्यूँ नहीं पढ़ते हमे उस पाठ से नफरत क्यूँ है हम श्री राम , तुलसी दास , कबीर दास , विवेकानंद , रजा हरिश्चंद्र , महात्मा गांधी , या नबी ( स. अ . व ) कुरान वली सूफी संत गीता पुराण या वो सब लोग जिन्होंने इंसानियत का पाठ पढ़ाया मोहब्बत का सन्देश दिया एकता सिखाया आखिर हम उन्हें मानते तो हैं मगर उनके बताये हुए रस्ते पर चल कर इंसान क्यूँ नहीं बनते अगर हम उनका आदर सम्मान करते हैं तो उनकी बातें क्यूँ नहीं मानते अगर उन्हें मानते हैं तो उनके आदर्शो पर चलना होगा या तो उनके माननेवालों के लिस्ट से निकल कर खुद को अलग करना होगा क्यूँ के गुरु का पहचान चेला यानि शिष्य से होता है और शिष्य का पहचान गुरु से होता है हम जिसे अपना गुरु या धर्म गुरु कहते या मानते तो हैं पर उनकी राहों से अलग होते हैं तो लोग हमारे साथ साथ उन गुरु पर भी प्रश्न चिन्ह लगाते हैं इस लिए हमें इंसानियत और प्रेम को समझना होगा उस पर चलना होगा तब हम इंसान कहला पाएंगे और जब खुद को इन्साफ के तराज़ू पर रखेंगे तो खुद को बदलता हुआ पाएंगे और जब हम बदलना शुरू करेंगे तो एक दिन ये समाज खुद बदल जाएगा क्युंके समाज हमसे है हम ही से समाज है हम नहीं तो समाज नहीं .
इस लिए इन्साफ और बदलाव का काम खुद से शुरू करना होगा अगर हम चाहते हैं के हम खुश और समाज खुश हाल रहे तो हमारे आत्मा और मन कि सफाई ही से हमारे आने वाले वंश का कल्याण होगा अगर हम गंदे और वही लुटेरे पापी बलात्कारी और भ्रष्टचारी रह गए तो हमारे घर में इन पापों का जन्म होता रहेगा एक बृक्ष के निचे हम जितनी भी सफाई कर लें मगर उस बृक्ष का बिज जमना बंद नहीं करेगा जब तक वो बृक्ष है और उस से दाना उस जगह गिरता रहेगा . इस लिए पहले हमे खुद पाप के बृक्ष को काटना होगा खुद को बदलना होगा खुद को संवारना होगा तब धीरे धीरे हमारे घर और समाज से ये पाप कि बृक्ष निकलेंगी तब उस पापी धरती को पाक साफ़ बनाया जा सकता है वहाँ से कांटो के जगह पर फूल उगाये जा सकते हैं वहाँ से खुशबु ही खुशबु मिल सकती है .
इस लिए इन्साफ के लिए खुद को बदलना होगा तब सही इन्साफ कर पाएंगे .
धन्यवाद :
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