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आज पुरे देश में चुनाव का बिगुल बज चूका है हर नेता आज इसी फिकर में है के कैसे कुर्सी तक पहुंचा जाय क्युंके कुर्सी के लिए हर वो काम सही होता है जिस से एक वोट मिल जाए चाहे किसी कि बुराई करने से कोई खुश होकर दे दे . क्युंके दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है जो आज अपने टोली में आना चाहता है उसे आने दिया जाता है चाहे कल वो बहुत ही बड़ा बेईमान और चोर ही क्यूँ न था जब दुश्मन था तो चोर था जब आज हमारे टोली में आ गया तो ईमानदार हो गया यही है आज कि निति और ऐसे ही चल रही है भारत में राजनीती हमारे देश में आज मंच पर जिस तरह का एक तरफ़ा हमला ही हमला और सिर्फ दूसरे कि बुराई ही गिनवाई जा रही है हमें क्या करना है हम किया करेंगे हमारा दिल किसके साथ है हम क्या पसंद करते हैं हमें किसके लिए क्या करना है ये हम नहीं बोलना चाहते हैं हम अपने मंच पर सिर्फ दूसरे कि बुराई का पूरा अध्याय ख़तम करने में लगे हुए हैं आज आम जनता भी उसी के तरफ नज़र उठा रखी है के कम से कम इस चुनाव के मौसम में ही कुछ छूट मिल जाए और कोई नेता इसी बहाने मेरे दस वोट के लालच में मुझे कुछ दे दे के दो महीने का राशन आ जाए क्युंके ये नेताओं का बाढ़ सिर्फ चन्द ही महीने का है फिर ५ साल तक ये नज़र तो दूर इनकी परछाई भी नज़र नहीं आने वाली है .
क्या वोट सिर्फ दूसरे कि बुराई से ही हासिल किया जा सकता है आज जिसे भरपूर गाली देते हैं बुरा कहते हैं बेईमान और भ्रष्टचारी कहते हैं अगर कल वही इंसान किसी बड़े कुर्सी पर बैठ गया बे इमानि या नोट कि ताक़त से हज़ार गलियों के और धड़ना के बाद भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन जाता है तो अब उसे वो सम्मान देने के लिए मजबूर होते हैं जो हम देना नहीं चाहते थे आखिर क्यूँ वो इस लिए के आज हम अपने अंतरात्मा कि बात नहीं सुनते अपने ईमान पर खुद क़ाएम नहीं हमारे दिल में चोर बैठा होता है आज कोई किसी नेता से ये पूछने कि हिम्मत नहीं रखता के कल जब तुम कुर्सी पर थे तो तुमने ये क्यूँ किया था आज किस मुंह से मेरे सामने आये हो तुम्हे शर्म नहीं आती, नहीं हम पूछने के बजाये उसके आज चंद फेंके हुए सिक्के लेने के बाद उसी का नारा लगाते हैं फिर उसी कि राग अलापते हैं उसी का प्रचार करते हैं .
आज साधू संत हर आदमी अपनी रोटी सेंक कर कुर्सी के तरफ बहुत ही तेज़ी से निकलना चाहता है हर आदमी जो नया होता है वो दूसरे कि बुराई कर के ही अपने आपको प्रसिद्ध करना चाहता है एक हवा अन्ना हज़ारे ने चलायी उस वक़्त पूरा भारत जोश में आया सबको अच्छा लगा कुछ गरीब डंडे खा कर चुप हो गए तो कुछ चिल्ला कर थक गए कुछ उसी में कामयाबी के डोर को पकड़ कर एक महान हो गए आज अरविन्द केजरीवाल से माननीय मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल हो गए बेचारे अन्ना हज़ारे वही अन्ना हज़ारे रह गए बाबा रामदेव योग गुरु आज देश के सबसे ज़ेयादह समझदार और महान और आम जनता के सेवक जो सबसे गरीब और फ्री में जनता का सेवा करते रहे आज मंच के बड़े नेता और मझे हुए राजनीति के बादशाह बन्ने के तरफ चल पड़े हैं काश आज नारायण साईं या आसाराम भी आज़ाद होते तो वो भी एक नयी पार्टी जो बना चुके थे आज उसका भी प्रचार होता यानि हर नयी पार्टी ईमानदार बाक़ी सब पार्टी बेईमान जितनी पार्टी एक साथ सब ईमान दार दूसरे बेईमान जब दो पार्टी थी तो कभी एक चोर दूसरा सही था तब दोनों को चोर कह कर तीसरा सही आया फिर तिन को चोर कह कर चौथा आया फिर चार को चोर बता कर पांचवा आया इसी तरह आज गिनती भी करना मुश्किल है के कौन है जो आखिर में सही और सब पुराने चोर हैं और सबके साथ जनता है कोई पार्टी जनता के बिना नहीं चलती साबित ये होता है के अगर पचास पार्टी है तो उनचास चोर हैं आखरी वाला एक सही है और उनचास के समर्थक भी चोर हैं यानि के नेताओं के साथ जनता भी होती है जो एक दूसरे को चोर ही समझ रही है तब फैसला कैसे होगा के कौन चोर कौन सही है , नहीं यही बात अब मान लेनी होगी के अफ़सोस है हमारे देश का दुर्भाग्य है के हमारे देश में सौ से निनानवे बेईमान फिर भी देश महान .
आज के नेता अपनी पूरी ताक़त पूरी आव भाव से सिर्फ यही हमारे दिमाग में बैठाना चाहते हैं के मैं ही सच्चा हूँ बाक़ी सब बेईमान जबके सबके दामन पर बेईमानी का दाग है अत्याचारी का दाग है ज़ुल्म का दाग है नाइंसाफी का दाग है एकता को तोड़ने और नफरत फ़ैलाने का दाग है देश कि जनता का कमाया हुआ पसीने का पैसा ठाट बाट से मंच सजा कर अपना राज सिंघासन बना कर इत्र इत्र कर नए नए ढंग से भासड़ देकर जनता को बेवक़ूफ़ बनाने का दाग है फिर कहता है के हम ईमानदार बाक़ी सब बेईमान हैं सच ये है के आज का नेता सिर्फ अपने नाम सम्मान और कामयाबी के लिए ईमानदार है अपने जनता के लिए सभी बेईमान हैं .
आज का मंच सिर्फ बुराई करने और आपत्तिजनक बात करने के लिए सजाया जा रहा है जनताहित में कोई भी बात करने या जनता के तकलीफों पर सहमति जताने या उनसे हमदर्दी करने के लिए नहीं सजाया जाता सिर्फ अपने लिए भीड़ जमा करके लोगों को बताया जाता है के देखो ये सब हमारे बेवक़ूफ़ वोटर है जो हमको ही वोट देंगे , आज जो भी प्रधानमत्री बने बस उसका मक़सद उस कुर्सी तक पहुंचना है चाहे उसके लिए जितना पैसा लगे जितनी गोलियां चले या जिसको खरीदना पड़े या कुछ भी करना पड़े बस कुर्सी कि दौड़ है और कुछ नहीं है किसी के पास मंदिर मस्जिद का मुद्दा है तो किसी के हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा है तो किसी के पास ज़ात पात का मुद्दा तो किसी के पास कुछ तो किसी के पास कुछ का मुद्दा मगर गरीब के गरीबी यतीम कि यतीमी का पञ्च बेटी के लाचार बाप का या इंसानियत का या जंगल झड़ी में बसने वाले भारतवासी का मुड़ा किसी के पास नहीं है हर जगह पक्ष पात और एक समूह को सँवारने और अपने तरफ लाने में लगे हैं .
महान या अच्छे विचार के लोग वो हैं जो दूसरे के कुकर्म के सामने खुद अच्छा कर्म करें कुकर्मी को कुकर्मी कहने से ज़ेयादह पर्भावशाली होगा और खुद को मान मर्यादा और सम्मान के हद में रह कर अपनी प्रशंशा अपने अच्छे कर्म से बढ़ाएं तो नहीं मिटने वाला सम्मान भी मिलेगा . क्युंके .
बुरा जो ढूंढन मैं चला बुरा मिला न कोय : आपन आप जो परखा मुझ से बुरा न कोय
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