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आज देश का हर वो इंसान जिसे भारतीय होने का सौभाग्य हासिल है चाहे वो अपने वतन भारत में है या अपने देश के बाहर किसी भी दूसरे देश में अपनी रोज़ी रोटी के लिए सांस ले रहा है हर भारतवासी के लिए आज गर्व व शान का दिन है और फूले नहीं समां पा रहा है सबके जज़्बात और ख़ाहिशात ख़ुशी के उमंग में डूबा हुए हैं के आज २६ जनवरी को हमारे देश को एक दस्तूर मिला कानून बने सबको अपना अख्तियार मिला जिस दस्तूर के मिलने के दिन को हम आज यादगार के तौर पर ख़ुशी का इज़हार कर के मनाते हैं बेशक इस ख़ुशी कि कोई इन्तहा नहीं है ये एक पर्व है जिसे हर हिंदुस्तानी को एक साथ खड़ा करता है आज कोई अलग नहीं नज़र आता कोई किसी से ये नहीं कहता के ये पर्व हिन्दू का है ये पर्व मुस्लमान का है या किसी एक ज़ात या धर्म का है आज एक ही नारा है ये पर्व हमारा है ये तिरंगा हमारा है ये देश हमारा है ये पर्व हर उस इंसान का है जो हिंदुस्तानी है आज कोई किसी से जुड़ा नहीं कोई किसी से नफरत नहीं कोई भेद नहीं कोई भाव नहीं सिर्फ एक ही आवाज़ है एक ही पहचान है एक ही शान है एक ही ख़ुशी का तूफान है देख लो ऐ दुनिया वालों यही हमारा हिन्दुस्तान है.
क्या हमने कभी सोचा हैं के ये ख़ुशी ये पहचान और ये जज़्बात हम आज के सूरज को डूबते ही क्यूँ भुला देते हैं फिर क्यूँ लौट जाते हैं उस अंदाज़ में जहाँ हमें बाँट दिया जाता हैं अलग कर दिया जाता हैं एक दूसरे के लिए नफरत भर दिया जाता हैं क्यूँ नहीं ज़िंदा रहने दिया जाता हैं हमारे सीने में इस मोहब्बत को क्यूँ नहीं रहने दिया जाता आबाद हमारी एकता और अखंडता को क्यूँ बिखर जाते हैं हम क्यूँ तोड़ दी जाती हैं हमारी ताक़त .
किसे मिलता हैं इस से फायेदा कौन होता हैं खुश हमारी अलगाव से क्यूँ नहीं समझ पाते हैं हम अपनी महत्त्व क्यूँ आते हैं हम दुश्मनो के बहकावे में यक़ीनन जो एकता का दुश्मन हैं वो देश का दुश्मन हैं समाज का दुश्मन हैं हमारे देश कि उन्नति का दुश्मन हैं फिर हम क्यूँ नहीं खाते कसम के एक होकर रहेंगे आपसी सौहार्द को बनाये रखेंगे अपनी ताक़त को टूटने नहीं देंगे यही दस्तूर बना था आज यही संकल्प हुए था आज .
अफ़सोस आज पार्टी को मज़बूत बनाने का संकल्प रैली तो निकलती हैं कुर्सी हासिल करने के लिए चिंतन रैली तो निकलती हैं पुरे भारत में राज करने के लिए हल्ला बोल रैली तो निकलती हैं मगर आज तक एकता रैली नहीं निकली भाईचारा रैली नहीं निकली गरीबी मिटाओ अभियान रैली नहीं निकली दबे कुचलों को बचाओ रैली का आयोजन नहीं हुए आखिर ऐसा क्यूँ नहीं होता सिर्फ इस लिए के गरीबों मजबूरों बेसहारों कि कोई पार्टी ही नहीं इंसानियत और एकता किसी पार्टी का विषय ही नहीं .
आज के इस पावन पर्व पर सब नेताओं के मुंह से फूल झड़ेंगे प्रेम ही प्रेम कि राग होगी सभी इंसानियत के गीत गाते नज़र आयेंगे मगर कल से फिर वही पुरानी चाल और बेढंगी रफ़्तार जो पहले थी सो अब भी हैं . काश ऐसा हमेशा होता जो आज हो रहा हैं तो हम कभी भी २६ जनवरी को भुला नहीं पाते इस पर्व का सुगंध हमें रोज़ मिलता और हम शान जान से यही कहते यही गाते और गुन गुनाते
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसितां हमारा
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