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शपथ से वफ़ा करना शपथ का सम्मान है

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सबसे पहले देश के नए प्रधान मंत्री श्री नरेंदर मोदी को बधाई हो के हमारे देश की सबसे ज़िम्मेदार और गौरवशाली कुर्सी पर विराजमान हुए . आज जिस तरह आज की अदालतों में किसी की गवाही से पहले शपथ लिया जाता है और वो गवाह कहता है के हम सच के सेवा कुछ नहीं कहेंगे मगर पूरी अदालत में वो झूटी ही गवाही देता है और अपना केस कभी कभी जीत भी जाता है इस में जज का कोई कसूर नहीं होता क्यूंकि वो गवाह और सबूत के बिना पर फैसला सुनाता है उसी तरह से आज हमारे देश की राजनीती में भी शपथ पत्र एक रस्म व रेवाज बन कर रह गया है शपथ को हम या हमारे नेता एक शब्द से ज़यादह कुछ नहीं समझते हैं काश उस शपथ का मानी और महतव जान पाते के शपथ किया है शपथ यानि कसम और यहाँ मैं उल्लेख करना चाहूंगा के इस्लाम धर्म में शपथ ( कसम ) का महत्व क्या है यदि कोई आदमी एक कसम खता है और फिर उसे तोड़ देता है है तो उसपर तीन दिन तक रोज़ा ( उपवास ) करना पड़ता है या ६० गरीबों को खाना खिलाना वाजिब होता है तब वो एक कसम को तोड़ने की सजा से मुक्त होता है तो पता चला के कसम खाना आसान नहीं कसम उसी का खाया जाए जिसे इंसान निभा सके नहीं तो शपथ एक मज़ाक बन कर रह जाता है और उसका सम्मान नहीं करना उस ईश्वर का सम्मान नहीं करने के बराबर है जिसके नाम से शपथ लेते हैं क्यूंकि ईश्वर से बड़ा कोई नहीं वो जो चाहे कर सकता है अगर हम उसका सम्मान और उसके तरफ से आने वाले सजा को याद रखें तो हम से कभी भी कोई जुर्म नहीं होगा और उसके नाम से सुरु होने वाला हर काम लाभदायक होगा .
इस लिए आज मैं यही प्रार्थना करूँगा के नेता या जो भी अगर शपथ ले तो सोच समझ कर ले और अपनी जान को किसी मामूली फायदे के लिए जोखिम में न डाले क्यूंकि ये दुनिया चाँद दिन की है जब हम अपने किये हुए कर्तब्य का बदला पाने के लिए उस ईश्वर के सामने जाते हैं तो वहां कोई नहीं होता इसको बांटने वाला वहां सिर्फ हम और हमारा ईश्वर ही होगा वो क्या देगा वो हम लेंगे क्या मिला क्या नहीं मिला ये देखने वाला कोई नहीं होगा तो जब हमारे दुःख और गुनाहों का कोई भागीदार नहीं तो हम उसके आराम के लिए अपने को क्यों गुनाह में डालें अगर हम गुनाह सम्जहते हैं तो क्यों करें इस लिए कसम का महतव सबको जानना चाहिए ताके उस ईश्वर के सामने हम दोषी न गिने जाएँ .
धन्यवाद .
इमाम हुसैन क़ादरी सीवान बिहार

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