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बुरा जो ढूढन मैं चला बुरा मिला न कोय
आपण आप जो परखा मुझ से बुरा न कोय
आज हमारे देश में बहुत सी हवाएँ चल रहीं हैं कहीं किसी ज़ात को लेकर कहीं किसी महात्मा के आचरण पर बातें हो रही है हर एक हिस्सा दूसरे हिस्से को निचा और छोटा और कमज़ोर दिखने में लगा है मगर खुद पर नज़र नहीं करता के हम क्या हैं हमारे अंदर कितनी बुराईयाँ हैं हमें सबसे पहले अपना सुधार ज़रूरी है के नहीं हर वो आदमी जो दो या चार किताबें पढ़ लेता है तो अपने आप को एक विद्दवान और बहुत ही काबिल समझ बैठता है .
आज वही हालत हमारे देश के बहुत से लोगों के अंदर आ चूका है चाहे वो किसी भी ज़ात या धर्म या समुदाय के हों सबसे पहले मनुष्य की उस ताक़त को नहीं पहचानते जो एक मनुष्य में छुपा होता है आज दुनिया के हर स्थान पर हर कामयाबी पर हर उस बड़े से बड़े अनोखे शिखर पर मनुष्य ही पहुंचा हुआ है उसकी वजह अच्छी सोच अच्छा कर्म अच्छे विचार अच्छे स्वभाव और अच्छी सांगत है कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी आव भगत के लिए एक गरोह को आगे की तरफ जाने नहीं देते उसके विचार को बदलने नहीं देते उसके अच्छे कर्म की सराहना नहीं करते क्यूंकि अगर वो बदल गया तो फिर इनकी खातिरदारी और चापलूसी कौन करेगा इनके इशारे पर इनके बचाव में अपनी जान कौन देगा ये किसके सरदार कहलायेंगे ये किसको अपने जूतियों पर बैठा कर खुद को बड़ा आदमी कहलायेंगे आखिर क्यों नहीं हमारे देश में एकता और अखंडता की लहर चल नहीं पाती हम लाख आपस में एकता बनाना चाहे मगर कुछ लोग हैं जो हमें एक नहीं होने देते क्या एक मैदान में संख नहीं बज सकता उसी मैदान में एक तरफ आज़ान नहीं हो सकती उसी मैदान में एक तरफ और भी अपनी ज़बान में अपने ईश्वर या गॉड या अल्लाह को अपने तरीके से याद नहीं कर सकते क्यों हमें इन्ही बातों में उलझा कर हमारी कामयाबी और उन्नति के रस्ते से भटका दिया जाता है क्यों हमें घर गांव देश के बारे में सोचने से हटा कर इन बातों में फंसा दिया जाता है .
क्या ऐसा मुमकिन नहीं के हम अपने गांव या मोहल्ले में एक जगह सभी को बैठा कर एकता और प्रेम का पाठ पढ़ाएं गांव की उन्नति के लिए आपस में विचार करें उस काम के बारे में सोचें जिस से गांव का नाम रौशन हो किसी की बुरी नज़र हमारे गांव या मोहल्ले या जिला या देश को नहीं लगे क्या हमने कभी सोचा है के अगर एक गांव में भिन्न वर्ग के लोग रहते हैं और जब उस गांव का एक बच्चा किसी दूसरे गांव के बच्चे से उलझ जाता है और दूसरे तरफ वाला पुरे गांव को ललकारता है तो गांव की बात आते ही हम भूल जाते हैं के हमारे गांव का बच्चा हिन्दू है या मुस्लिम या ईसाई या किसी और धर्म का हम सिर्फ यही सोचते हैं के बात गांव की आई है हम गांव की इज़्ज़त नहीं जाने देंगे गांव की शान नहीं मिटने देंगे पूरा गांव उसके मुकाबले के लिए तैयार हो जाता है और उस मामले की हल चाहता है यही एकता की ताक़त अगर हर इंसान के समझ में आ जाए तो आज हमारा गांव जिला या देश उसी तरक़्क़ी के शिखर पर होगा जहाँ दुनिया के और देश अपनी शान और ताक़त का झंडा लहरा रहे हैं .
कोई इंसान था जब उसने अपने चार बेटों को आपस में लड़ते हुए देखा तो उसने चार लकड़ी के टुकड़े को लिया और चारो को एक जगह करके बाँध दिया और अपने लड़को को बुलाया और बोला के तुम में से एक एक करके इस बंधी हुयी लकड़ी को तोड़ो सबने एक एक कर के आज़मा लिया मगर कोई तोड़ नहीं सका फिर उसने लकड़ी को खोल दिया और सबको अलग अलग कर दिया फिर बोला अब एक एक लकड़ी को तोड़ो तो एक ने बारी बारी सब लकड़ी को तोड़ दिया तब बाप ने कहा जब सब एक थे तो तुम तोड़ नहीं सके जब अलग अलग हुए तो तुमने तोड़ दिया यही है एकता की ताक़त .
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