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सरकार बदल गयी मंत्री मंडल बदल गया लोगों का ख़याल और सोच भी बदल कर एक मज़बूत और न टूटने वाली सरकार का गठन करना लोगों ने मुनासिब समझा ताके कोई बहाना न रहे पूरी ताक़त के साथ एक ऐसे प्रधानमंत्री को चुना गया जो तमाम सभाओं में गरीबों के बारे में ही बोलता था गरीबों की फ़िक्र में ही चलता और रहता था हर समय हर घडी एक ही आवाज़ आती रही के नया भारत और खुशहाल भारत बनाना है तो मोदी जी को लाना है तो सबकिदुआएं और म्हणत के साथ साथ आम जनता के दिल में बदलाव के ख़याल ने अपना रंग दिखाया और सब कुछ नया हुआ नयी सोच नए इरादे और नयी लगन और नए जोश ने कामयाबी हासिल की और सभी अपने अपने कुर्सी पर भी विराजमान हो गए मगर आज भी गरीब के आंसू इस ग़म में बाह रहे हैं के काश एक पैग़ाम सुनाई देता के अब कोई बेटी नहीं रोयेगी नहीं डरेगी किसी बेटी की इज़्ज़त तार तार नहीं होगी कानून अपने शिकंजे को मज़बूत कर दिया है हर घर हर गली चौराहे पर नारी जगत की इज़्ज़त की हिफाज़त के लिए सरकार ने नए उपाय कर लिए हैं ख़ुफ़िया पुलिस या दूसरे तरह के बंदोबस्त हैं जिस से अब देश की हर नारी का सम्मान और हिफाज़त होगा क्यूंकि नारी जगत की बेइज़्ज़ती और आत्मसम्मान और ज़ुल्मसे बड़ा और कोई पाप या ज़ुल्म या नाकामी नहीं होता .
मगर नहीं ऐसा कुछ नज़र नहीं आता क्यूंकि बड़े घर के लोगों पर या तो इसका असर नहीं होता या तो उनके यहाँ इस तरह की बातें धयान देने के काबिल नहीं होती जितने भी हादसे होती हैं जैसे बलात्कार या छेड़ छाड़ ये सब आम जनता के बेटियों के साथ ही होता है क्यूंकि उनके लिए कोई सिक्योरिटी या गार्ड या ड्राइवर नहीं होता या यूँ कहिये के हमारे देश की ग़रीब जनता के पास उतने साधन नहीं के अपने बेटियों को समय से अपने घर से विदा कर सकें और अपनी घर की इज़्ज़त को बचाये रखे आज तक जितनी भी सहूलतें मिलती हैं सब ग़रीब जनता उस से महरूम ही रहते हैं .
क्या हर गांव को एक सिक्योरिटी सेंटर या एक हर पंचायत में पुलिस चौकी या ऐसा टोल फ्री नंबर जिस पर डायल करने से पुलिस फ़ौरन पहुंचे और गांव मोहल्ले की हर जनता अपने आप को सेफ समझे ग़रीब माँ बहनो के पास एक ऐसी जगह नहीं है जहाँ अपनी ज़रुरत परदे में पूरी कर सकें स्कूल को ऐसा बनाया जाय जहाँ लड़कियां और लड़के अलग अलग परदे के चलन को निभाएं बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो मामूली हैं अगर सरकार धयान दे तो बहुत ही काम लागत में ग़रीब बेटियां इज़्ज़त की ज़िन्दगी बसर करती हैं .
मगर अफ़सोस आज ग़रीब की इज़्ज़त की फ़िक्र न तो किसी नेता को है न तो किसी सरकारी अधिकारी को यही वजह है के आज भी पहले की तरह साड़ी घटनाएँ जारी और सारी हैं .
हम अगर नेताओं पर ताना कशी और इलज़ाम लगाना छोड़ कर अपनी अपनी बहनो की हिफाज़त और उनकी देख रेख का खुद से रास्ता निकालें या एक पंचायत में कमिटी बने जो ऐसे घटनाओं पर नज़र रखे और अपनी हिफाज़त खुद करने की कसम खा लें हर उस कमज़ोरी को तलाश करें जिस से ये घटनाये होती हैं जैसे लड़कियों की आज़ादी उनकी मर्ज़ी उनकी समय से शादी न होना परदे का रेवाज बहाल न करना इन तमाम बातों को आपस में बांटे और चिंतन करें तो बहुत सी घटनाएँ रुक सकती हैं हम यहाँ लम्बी लम्बी बातें लिखते हैं मगर इसका असर नहीं होता तो हम क्यों नहीं अपनी कमिटी और अपना रास्ता खुद बनायें जिस से हर इंसान को लगे के हाँ इस पर ध्यान ज़रूरी है क्यूंकि नेता तो फिर पांच साल बाद ही हमारी ग़रीबी और बेइज़्ज़ती को पूरी दुनिया को बताने आएंगे उनको ये मुद्दे बने रहने चाहिए ताके हमें बेवक़ूफ़ बना कर दूसरे चुनाव में हमें अपनी चिकनी बातों से आकर्षित कर सकें और हम नए चेहरे के चंगुल में फिर फँस जाएँ .
इस लिए मैं यही चाहूंगा के तमाम सियासी बातों को छोड़ कर हम आपसी कठिनाइयों को खत्म करने का मश्विरा करे और अपनी अपनी राय लोगों तक पहुंचाएं और लोगों की राय पर विचार करें जब तक हम खुद नहीं संभलेंगे कोई हमारे बारे में नहीं सोचेगा .
खुदा ने आज तक उस कौम की हालत नहीं बदली : न खुद हो ख़याल जिसे अपने ही हालत के बदलने का
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