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कितने टुकड़ों में बट गया इंसान

Great India
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दोस्तों जो कुछ भी आप अभी पढ़ने जा रहे हैं मेरे समझ से शायद आपको लगे के ये क्या है इस से फायदा क्या है मुझे भी ये लिखते हुए कुछ ऐसा ही लग रहा है मगर क्या करूँ दिल ने आवाज़ दी है दिल ने चाहा के इस पर भी कुछ विचार कर ही लिया जाय के आखिर इंसान तो है एक इंसान, फिर इसके अनेक नाम अनेक धर्म अनेक विचार अनेक सोच अनेक टोली अनेक पहचान मगर सभी का एक ही नाम इंसान है .
क्या हक़ीक़त में सभी इंसान हैं ?
तो फिर सबके अंदर एक पहचान क्यों नहीं ?
सभी में इंसानियत क्यों नहीं ?
जिसमे इंसानियत नहीं
अच्छी सोच नहीं
एकता प्रेम इंसानियत के गुड़ नहीं
उसे हम क्या कहें अगर पापी, बलात्कारी, नफरत के पुजारी , अलगावबादी, आतंकवादी , उग्रवादी , कातिल और जुर्म की राह पर चलने वाले हर उस मनुष्य को हम इंसानियत के सूचि से बाहर निकाल कर बाक़ी इंसानियत के राह पर चलने वाले एक साथ हो जाएँ और हर एक इंसान दूसरे के मन से मन और दिल से दिल मिला कर सब को समझता हुआ अपनी उस मंज़िल के तरफ निकल पड़े जहाँ
इंसाफ है एकता की ताक़त है
प्रेम की धारा है
इंसानियत को ऊँचा मुक़ाम हासिल है
जहाँ हर तरफ इंसान ही इंसान हैं
जहाँ एक आवाज़ है,
अगर धर्म के आधार पर राम के भक्त हैं तो वहां सभी एक ही नाम का माला जप रहे हैं न कोई निचा है न कोई ऊँचा है न कोई बड़े जाती का है न कोई छोटे जाती का न कोई अपवित्र जाती का है न कोई अछूत है सबका एक ही ईश्वर है तो एक ही अवतार राम हैं तो यहाँ अब अलग ज़ात और अलग टोली कोई नहीं यहाँ सिर्फ एक ही नाम और ज़ात है जो अपने ईश्वर की उपासना और पूजा में मस्त है क्यूंकि कोई भी नफरत का पुजारी राम का आदर सम्मान करने वाला कैसे हो सकता है अगर आदर सम्मान करने वाला है तो नफरत करने वाला कैसे हो सकता है अगर दोनों बातें हैं तो कोई शक नहीं के वो इंसान नहीं आस्तीन का सांप है जो हमेशा डंसने के लिए तैयार है अपनी राज की रोटी सेंकने के लिए भेस बदल कर इंसानो की टोली में घुसा हुआ बैठा है और अपनी मक़सद के लिए समय का इंतज़ार कर रहा है .
अगर कोई इस्लाम धर्म का इंसान है तो वहां भी एक ही ईश्वर ( अल्लाह ) के नाम का रट है एक इमाम बना है तो बाक़ी उसके पीछे उसके आवाज़ से आवाज़ मिला कर अपने ईश्वर को पुकार रहे हैं यहाँ न कोई बड़ा है न छोटा न उच्य जाती का है न नीच जाती का सभी इंसानियत के रिश्ते नाते में एक हैं इंसान हैं उस अल्लाह के बन्दे हैं यहाँ भी एकता, प्रेम, हक़ और सच्चाई का ही नारा है जब तक अच्छाई के रस्ते पर है तब तक इंसान है जब रास्ता भूल गया और बुराई का रास्ता पकड़ लिया तो उसे इस टोली से बाहर निकल दिया जाय उसे इंसानो के इस टोली में रहने का कोई अधिकार नहीं वो इंसान नहीं इस्लामी नाम रख लेने से वो इस्लाम का नहीं हो सकता जब तक उसके रस्ते पर नहीं चलता ठीक उसी तरह कुत्ते को अगर शेर का खोल पहना दिया जाय तो वो शेर नहीं होता शेर की पहचान है गुड हैं जब तक वो साबित नहीं होता वो शेर नहीं हो सकता है
धर्म = बहुत से धर्म हैं मगर एकता प्रेम और अच्छाई सबका मक़सद है
दौलत
उच्य कोटि के लोग
जिसके पास दौलत का अम्बार है किसी चीज़ की कमी नहीं उन्हें उच्य कोटि के लोग कहा जाता है अधिकतर लोगों में कोई क़ायदा कोई पाबन्दी कोई कानून नहीं जिसकी जो मर्ज़ी है करता है पूरी फेमिली एक साथ नाचे गाये शराब पिए या कोई भी जुर्म करे वो जुर्म में नहीं गिना जाता उसे बड़े लोग कहते हैं जहाँ माँ और बहने बिलकुल तंग कपड़ों में रहें तो कोई गुनाह नहीं जिनके माँ बाप के लिए ओल्ड ऐज होम बनाया गया है जिन्हे अपनों से अलग कर दिया जाता है .
मध्य वर्ग के लोग
जिनकी दौलत कुछ कम है न गरीब हैं न बहुत अमीर हैं जिनके घर में दुपट्टे का रसम है माँ बाप का आदर है बड़े छोटे भाई का सम्मान है हर बुज़ुर्ग और कमज़ोर की सेवा धर्म का एक हिस्सा है आँखों में शर्म है बेटियां माँ बाप की मर्ज़ी से चलती हैं और माँ बाप के मर्ज़ी से शादी की रस्म को कबूल करती हैं ऐसे घराने को मध्य वर्ग या मिडिल क्लास के लोग कहे जाते हैं .
निचले वर्ग के लोग
जिनके घर में एक वक़्त की रोटी है भी या नहीं है खुशहाल हैं या नहीं हैं पूरा परिवार हर एक का सम्मान करता है घर की माँ बहने घूँघट में रहती हैं पूरा जिस्म कपड़ों से ढका होता है इज़त होती है शर्म होती है आदर सम्मान कूट कूट के भरा होता है हर बड़े के सामने हाथ जोड़ कर प्रणाम के लिए उठता है खुद निचे बैठ कर बड़ों को ऊँची कुर्सी दी जाती है उस घराने को निचा और लो क्लास के लोग कह कर उनका मज़ाक उड़ाया जाता है उनका एक छोटा जुर्म भी बहुत भयानक होता है उन्हें ज़बान खोलने पर पाबन्दी होती है जो जन्म से मरने तक अपनी पति और माँ बाप के सेवा को धर्म जानते हैं .
हाय रे हम अपने को इंसान कहते हैं और इंसानियत का खुला हत्या करते हैं फिर भी हम इंसान ही कहलाते हैं अफ़सोस .
क्या हम नहीं बदल सकते , क्या हम अपनी सोच के लेवल को ज़रा उठा नहीं सकते ज़माना चाँद पर यात्रा कर रहा है आकाश में उड़ रहा है हम अपने घरों में आग लगाने की तैयारी में जुटे हैं अपनी रोज़ी रोटी को हराम हलाल की पहचान से दूर करके सिर्फ दौलत के भूखे और दुनिया की चका चौंध में अपनी अस्तित्व को भूल रहे हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बोध जैन न जाने कितनी धर्मे हैं कितनी भाषाएँ हैं कितनी किताबें हैं क्या हमने कभी खूब ठीक से किसी एक का जिसे जो मानता है कभी पूरी किताब को पढ़ा उसे समझने की कोशिश की नहीं .
आज ज़रुरत है के उन पैग़म्बर अवतार या महापुरुषों की बातों को सुना जाय जिनके अंदर लोभ लालच मक्कारी स्वार्थ और नफरत किना नाम की चीज़ नहीं है उनका नहीं जिनका कल जन्म हुआ आज दवा खा कर बड़े हुए दौलत पाने के लिए कुर्सी हथियाने के लिए अपनी दुकान ज़माने के लिए टोपी कंठमाला के सहारे इंसान को ही इंसान का दुश्मन बता कर आपस में लड़ा रहे हैं उन्ही के पीछे हम भी जय जय कार करते एक दूसरे के खून के प्यासे बन रहे हैं क्या यही इंसान की इंसानियत है क्या यही मानवता है क्या यही रास्ता ईश्वर तक ले जाएगा .
दोस्तों आगे बढ़ें खुद को पहचाने खुद को समझें दुनिया को समझे इनके राज़ और मक़सद को समझें ये हमारे हमदर्द नहीं किसी शैतान के एजेंट हैं जो हमें टुकड़ो में बाँट रहे हैं और आपस में लड़ा रहे है .
———————— हमें आपकी राय चाहिए आभारी रहूँगा ————————————

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