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आतंकवाद
जब कोई आतंकवादी बनता है तो उसका मक़सद जो भी हो मगर जब वो अपने रस्ते पर चलता है और कहीं भी आतंक फैलाना चाहता है तो उसे मालूम है के जिस बम को जहाँ फोड़ने वाला है वहां किसी एक धर्म या ज़ात के लोग नहीं होंगे वहां हर समुदाय के लोग होंगे और किसी भी आतंक के बम पर एक आदमी का नाम नहीं लिखा होता इस लिए आम लोगों की मौत होती है तो अब वो किस धर्म का हुआ उसका सिर्फ एक धर्म हुआ जिसे आतंक कहते हैं उसका मक़सद और नतीजा लोगों को मारना हत्या करना सुख शांति भंग करना बच्चों को यतीम करना औरतों को बेवा करना और जीव हत्या करना अब जो उसने लेबल लगा रखा है चाहे जो हो राम का हो या रहीम का हो या जो हो मगर वो किसी धर्म का नहीं तो उसे किसी भी एक धर्म का नाम देकर उस धर्म से नफरत करना और सबको बदनाम करना कहाँ का इंसाफ है जबकि इस्लाम का मतलब ही सलामती का है और जो सलामती का दुश्मन होता है उसे इस्लाम खुद ही अपने से बाहर का रास्ता दिखा कर उसे सजा का हुक्म देता है इस लिए इस्लाम और आतंकवाद एक साथ हो ही नहीं सकता दोनों का मक़सद अलग अलग है .
नक्सलवाद
जब कोई नक्सली बस या रेल या बाजार या भीड़ को निशाना बनाता है तो क्या उसके बम पर नाम लिखा होता है के इसको मारना उसको मत मारना अब उसका भी मक़सद आतंकवादी जैसा नहीं के सिर्फ सुख शांति को भंग करे यतीम बनाये बेवा बनाये और जीव हत्या करे इसको किस धर्म से जोड़ा जाय इसको क्यों नहीं किसी समुदाय से जोड़ा जाता इस पर क्यूँ नही हंगामा होता क्या इस लिए के नक्सली में जो हिन्दू हैं या जो भी दूसरे लोग हैं उनके बम या बारूद से उनके लोगों की जाने नहीं जाती क्या नक्सली का मक़सद आतंकवादी के मक़सद से नहीं मिलता जबकि इसका भी नतीजा वैसा है जैसा आतंकवाद का .
स्वार्थ के लिए जान लेना
अगर कुमार ने रहीम को किसी भी वजह से मार डाला और रहीम के भाई या बाप कुमार को मारना चाहे और मार दे तो इन दोनों का मक़सद क्या था जीव हत्या सुख शांति को खत्म करना जान लेना जो कोई भी धर्म अनुमति नहीं देता नतीजा यही है के किसी की जान जाती है मक़सद बदला या लालच या गुंडागर्दी से अपनी बात मनवाना .
क्रांति
जब किसी देश में ज़ुल्म बढ़ जाए इंसाफ मिलना बंद हो जाए इंसान को इंसान नहीं समझा जाय हर तरह की आज़ादी छीन ली जाय तब जा कर क्रांति का जन्म होता है जिसमे हर मज़लूम एक होते हैं और अपने तमाम गीले शिकवे को भूल कर एक ज़ालिम से आज़ादी चाहते हैं जिसमे सभी का एक ही मक़सद होता है के अब बात और समझाने का समय समाप्त हो चूका है सिर्फ लड़ाई और ताक़त आज़माई का ही सहारा बचा है सामने वाले को किसी भी तरह तख़्त से उतार कर उसके ताक़त को तोड़ देना है अगर बाहरी है तो भगा देना है जैसा के एक क्रांति का समापन १५ अगस्त १९४७ को हुआ था उस में काफी जाने गयीं थीं माओं की गोद और मांगे सुनी हुई थी बच्चे यतीम हुए थे औरतें बिधवा हुई थीं वहां भी एक ही मक़सद था जान लो हत्या करो अपनी आज़ादी हासिल करो मगर वहां एक धर्म था एक समूह था जिसका नाम हिंदुस्तानी था वहां सभी का एक ही मक़सद था आज़ादी, ज़ुल्म से छुटकारा, देश को दुश्मनो से आज़ाद कराना , सभी एक थे सबका एक नाम था हिंदुस्तानी सबका एक पहचान था हिंदुस्तानी एक छत था एक तिरंगा था जिस पर हमें गर्व होता है के हमने अपनी जाने गँवा कर दूसरे की जान लेकर एक काम किया देश की हिफाज़त की वहां हर खून का मक़सद आज़ादी थी जो सब पर फ़र्ज़ था जिसे सब धर्मो ने मिल कर इजाज़त दिया मगर युद्ध का नतीजा जान क़ुरबानी मगर उसे एक महत्वपूर्ण नाम मिला जो देश की हिफाज़त के लिए मरे उन्हें शहीद कह कर इज़्ज़त दी गयी .
क्रोध में हत्या
जब हमारा देश आज़ाद हो चूका और हर तरफ खुशियां मनाई जारही थीं आज़ादी के नग्में गाये जारहे थे सभी को बापू की अगुवाई और सभी धर्मों के सहयोग से आज़ादी पर देश नाज़ कर रहा था तभी पता नहीं किस क्रोध में एक ऐसा भी था जो बापू की हत्या कर के पुरे हिन्दुस्तानियों को फिर एक गहरा ज़ख्म दे देता है देश को बापू के सोग में डूबा देता है सारे हिन्दुस्तानियों के सर से एक बेहतरीन सरपरस्त को छीन लेता है और आज उसी की पूजा और मंदिर और न जाने क्या क्या उसके नाम पर करने की तैयारी होरही है तो उसका मक़सद क्या था और आज वैसे लोगों का मक़सद क्या है ? जो पुरे हिन्दुस्तानियों के बापू के प्रति प्रेम और इज़्ज़त को चोट पहुँचाना चाहते हैं स्वर्गीय इंद्रागाँधी , स्वर्गीय राजीव गांधी और बहुत से ऐसे वीर हैं जिन्हे क्रोध में मार दिया गया वो मारने वाले कौन थे उनका मक़सद क्या था मैं सिर्फ उसकी बात कर रहा हूँ जो जो उस हत्या के ज़िम्मेदार थे क्यूंकि उनका भी किसी आतंक या नक्सलवाद या ज़ालिम के मक़सद से अलग मक़सद नहीं था .
इसी तरह की दूसरी हत्या
जैसे कुर्सी का नशा , ग़ुलामी का शौक़ इन सबका दारोमदार तो हत्या या ज़ुल्म पर ही होता है क्यों के अगर बिना तबाही और ज़ुल्म के ये सब हासिल हो जाएँ तो इनकी मियाद बहुत होती हैं और ऐसे लीडर मालिक सबके दिलों में रहते हैं अगर ज़ुल्म और हत्या और छल कपट से बनते हैं तो पतझड़ के मौसम में दरख्तों के पत्तों की तरह बहुत ही जल्दी गिर जाते हैं
( अगर कुछ बातें अच्छी नहीं लगें तो कृपया सुझाव दें आपका आभारी हूँगा आपका भाई ईमाम हुसैन क़ादरी सीवान बिहार )
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