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आज हम जिस बेटी की बचाव और मान सम्मान के लिए चिंतित हो रहे हैं बहुत ही अच्छा लग रहा है काश इस पर बोलने वाला लिखने वाला दिल से बोले और दिल से लिखे और इस पर दिल से सोचे भी क्यूंकि आज बहुत सी चीज़ें सिर्फ नाम और चर्चा में आने के लिए किया जाता है हक़ीक़त या सच्चाई से कोई वास्ता नहीं होता ऐसी बहुत सी मिसालें हैं आम जनता से लेकर मंत्री और प्रधान मंत्री तक को सिर्फ इस पर चर्चा और बयानबाज़ी ही करते देखा गया है मगर इस बेटी को बेटी बनाने या बेटी को उसका सम्मान देते बहुत कम देखा गया है जैसे
१. अगर कोई बेटी जब ब्याह कर अपने ससुराल जाती है तो पहला हमला जहेज़ कम मिलने पर होता है और इस गुनाह की सजा के तौर पर अत्त्याचार और ताना का ज़ुल्म सहते सहते अपनी जान भी दे देती है आखिर यहाँ भी तो वो किसी की बेटी होती है यहाँ के नए माता पिता से मान सम्मान और प्यार का हक़दार क्यों नहीं अगर जहेज़ पूरा लेकर जाती है तो इस गुनाह से बच जाती है फिर दूसरा हमला उस वक़्त होता है जब ये बेटी बहु और माँ बन कर सिर्फ बेटी को जन्म देने लगती है फिर जाहिल पति और जाहिल सास ससुर उस माँ को सिर्फ बेटी जन्म देने के जुर्म में सजा देना शुरू करते हैं जबकि पता नहीं के बेटा या बेटी को जन्म देने में माँ का कोई दायित्व नहीं होता वो तो मर्द का दायित्व है के एक घड़े में पानी रखे या शराब या फल का रस वो तो बस हिफाज़त करने का काम करती है.
२.जब एक बेटी ब्याह कर अपने ससुराल जाती है और बदनसीबी से किसी न किसी कारण उसके पति का स्वर्गवास हो जाता है तो अब वो ज़िन्दगी भर के लिए अछूत और मनहूस न जाने क्या क्या कही जाने लगती है और अब वो अपनी ज़िन्दगी को यूँही ख़त्म कर देती है इस तरह की न जाने कितनी बेटियां आज पूरी दुनिया या भारत में अपनी ज़िन्दगी के सुनहरे सपने को लूटा कर अभागन की ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं
और अगर पत्नी स्वर्गवास हो गयी तो मर्द फ़ौरन अपनी दूसरी शादी कर के अपने ज़िन्दगी के सुनहरे सपने को सजा लेता है.
क्या इन बेटियों को जिस तरह कमाने और घूमने और हर मामले में किसी भी मर्द से कमज़ोर या कम नहीं होने की वकालत की जाती है उसी तरह से उसके हर मामले में उसे आज़ाद क्यों नहीं रखा जाता जिस से उसके सपने चूर न होते जिस तरह से आज से ठीक १४०० साल पहले का यही रस्म था के लड़की को जन्म होते ही ज़िंदा गाड़ दिया जाता था किसी बेवा को उसके पति के साथ जला दिया जाता था तब मुहम्मद स .अ .व दुनिया में आये और एलान किया के नहीं जिस तरह बेटे को ज़िंदा रहने का हक़ है वैसे ही बेटी को भी है और बल्कि बेटियां मान सम्मान का हक़दार हैं और बरकत और रहमत लेकर आती हैं जिसने ७ बेटी को जन्म दिया और सही से परवरिश किया ब्याह शादी कर दी वो बाप वो भाई स्वर्ग का हक़दार हो गया यहाँ तक के अगर एक बेटी भी हुयी और उसे मान सम्मान के साथ उसका पालन पोषड किया और उसकी शादी कर दी तो वो बाप और भाई भी स्वर्ग का हक़दार हो गया सवर्ग की कुंजी उसे मिल गयी और शादी के बाद अगर पत्नी को पति के आचरण और बर्ताव ठीक नहीं और वो साथ नहीं रहना चाहती तो तलाक़ लेकर अपनी मर्ज़ी की शादी कर सकती है उसी तरह अगर पति का स्वर्गवास हो जाए तो चार माह १३ दिन के बाद जहाँ जिस से चाहे तो वो लड़की शादी कर सकती है ठीक उसी तरह जैसे मर्द भी शादी कर लेता है तलाक़ के बाद.
इस तरह दिया जाता है बराबरी का इंसाफ और ऐसे हो सकता है बेटी की हिफाज़त बेटियां भी इसी धरती की और उसी मालिक की हैं जिस मालिक का बेटे.
बेटियां रहेंगी तो बेटे होंगे अगर बेटियां ही नहीं रहीं तो बेटे कहाँ से आएंगे इस लिए बेटियां ही माँ बहन बीवी और वो सब बनती हैं जिनका दर्जा प्यार और मान सम्मान ही है .और बेटियों की अच्छी परवरिश करने वालों को सवर्ग की कुंजी मिलती है .
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